० आशा पटेल ०
रीवा-.नारी चेतना मंच ने कॉल कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से देश के विभिन्न भागों की सामाजिक कार्यकर्ताओं से सिजेरियन ऑपरेशन को लेकर परिसंवाद किया . कॉल कांफ्रेंसिंग में वाणी मंजरी दास पटनायक , भुवनेश्वर (उड़ीसा) , स्वरसती दुबे , पटना (बिहार), विभा जैन , जयपुर (राजस्थान) , सुनीता त्यागी , बिजनौर (उत्तर प्रदेश) मध्य प्रदेश से माधुरी लाल , (भोपाल) , शकुंतला सिंह , (शहडोल) , रीवा से निशा सिंह , सुशीला मिश्रा , करुणा आदिवासी , कौशल्या द्विवेदी , खुशी मिश्रा एवं अजय खरे ने प्रमुखता से भाग लेते हुए अपने अपने विचार व्यक्त किए .
{ शकुंतला सिंह शहडोल मध्य प्रदेश }
कॉल कांफ्रेंसिंग के दौरान वक्ताओं ने सिजेरियन ऑपरेशन की बढ़ती जा रही संख्या को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है . यह केवल बेहद खर्चीला ही नहीं बल्कि महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी इसका दूरगामी असर देखने को मिल रहा है .पहले जैसा परिवेश न होने से सिजेरियन ऑपरेशन लगातार बढ़ते जा रहे हैं . इसके लिए जहां अस्पताल व्यवस्था दोषी है वहीं जन जागरण के अभाव में लोग फंसते जा रहे हैं . अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी सिजेरियन ऑपरेशन का सिलसिला शुरू हो गया है .वक्ताओं ने कहा कि इमरजेंसी मामलों के लिए सिजेरियन ऑपरेशन की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता है लेकिन इसे व्यापार बना देना अत्यंत आपत्तिजनक बात है . 50 साल पहले जहां इक्का-दुक्का मामला छोड़कर अधिकांश घरों पर सामान्य प्रसव सुरक्षित रूप से होते थे . आज उसे असुरक्षित बना दिया गया है .
देखने में आता है कि बहुत ही महिलाएं अपनी सुविधा के लिए सिजेरियन ऑपरेशन को महत्व देती हैं लेकिन बाद में होने वाली परेशानियों के चलते हैं उन्हें अपने निर्णय पर अफसोस भी होता है . संयुक्त परिवार प्रथा के विघटन के चलते भी कुछ लोग अपनी सुविधा के अनुसार सिजेरियन ऑपरेशन के पक्ष में रहते हैं . इधर 108 गाड़ी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को भी शहरी क्षेत्र में प्रसव के लिए लाया जाता है . ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में आज भी प्रसव कराने की कोई सही व्यवस्था नहीं है . प्रसव को लेकर कोई भी जच्चा बच्चा के लिए जोखिम नहीं लेना चाहता है ,. बहुत कम मामले ऐसे होते हैं जिसमें डॉक्टर सामान्य प्रसव कराते हैं . खासतौर से नर्सिंग होम सिजेरियन ऑपरेशन के नाम पर लूट के केंद्र बन गए हैं . डॉक्टर की रिपोर्ट के बाद लोगों को मजबूरी में सीजेरियन ऑपरेशन के लिए तैयार होना पड़ता है .
देश भर में चिकित्सा मॉफिया के द्वारा सामान्य प्रसव को सिजेरियन ऑपरेशन में तब्दील करके मनमानी लूट की जा रही है . इसके चलते जहां महिलाओं का स्वाभाविक स्वास्थ्य खराब हो रहा है वही आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवारों के साथ भारी दिक्कत हो रही है . इस लूट से हर कोई परेशान है , लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है . राष्ट्रीय स्तर पर यह देखने में आ रहा है कि अधिक पैसा वसूलने के लिए सामान्य प्रसव को भी सिजेरियन ऑपरेशन में तब्दील कर दिया जा रहा है . यह बात गर्भवती महिलाओं के साथ सरासर क्रूरता है .जच्चा बच्चा को खतरा बतलाकर लूट का यह खेल जारी है . करीब 25 साल पहले तक सिजेरियन ऑपरेशन के मामले अधिक नहीं थे लेकिन अब सिजेरियन ऑपरेशन के बगैर बहुत कम बच्चे पैदा हो पा रहे हैं . देखने में यह भी आता है कि जिन गरीब परिवारों के पास कोई साधन सुविधा नहीं है वहां आज भी सामान्य प्रसव सुरक्षित रूप से हो रहा है . आखिरकार ऐसा क्या हो गया कि सामान्य प्रसव को असुरक्षित बना दिया गया . गांव की अनपढ़ दाई जो सामान्य प्रसव को आसानी से करा देती थी ,
उसे शहर में प्रशिक्षित डॉक्टरों की टीम भी सिजेरियन ऑपरेशन के बिना कराने को तैयार नहीं होती है . सिजेरियन ऑपरेशन का पूरे देश में एक नेटवर्क बन गया है जो गांव-गांव और घर घर तक सक्रिय हो गया . शायद ही ऐसा कोई डॉक्टर हो जो सिर्फ सरकारी अस्पताल में प्रसव कराता हो और नर्सिंग होम न जाता हो . नर्सिंग होम में सीजेरियन ऑपरेशन कराने पर अच्छी खासी कमाई है . सामान्य प्रसव की स्थिति में प्रसूता को देसी विधि विधान से पोष्टिक आहार के रूप में लड्डू वगैरह खाने को मिलते थे लेकिन सिजेरियन ऑपरेशन के बाद अंग्रेजी दवाइयों का ज्यादा असर रहता है . कॉल कांफ्रेंसिंग में वक्ताओं ने कहा कि सभी अस्पतालों में प्रसव कराने की फीस की लूट बंद होना चाहिए .
प्रसव को राष्ट्रीय कार्य मानते हुए 2 बच्चों तक के सारे खर्च सरकार को खुद उठाना चाहिए . सरकार को इस बात पर संज्ञान लेना चाहिए कि आखिरकार क्या कारण है कि सामान्य प्रसव इतनी तेजी से क्यों घट गए हैं . क्या महिलाओं की प्राकृतिक क्षमता पिछले 20-25 वर्षों में काफी कमजोर हो गई है ? या फिर चिकित्सा माफिया के गंदे खेल के चलते सिजेरियन ऑपरेशन की संख्या बढ़ती जा रही है . सिजेरियन ऑपरेशन के नाम पर हो रही लूट को हर हालत में बंद होना चाहिए .
एक टिप्पणी भेजें