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समकालीन युवा कवि हेमंत की स्मृति में उसकी जयंती के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच का आयोजन

० संवाददाता द्वारा ० 

भोपाल -समकालीन युवा कवि हेमंत की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में पूरे देश से 64 साहित्यकार जुटे। वंदना रानी दयाल की मधुर आवाज में सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का आरंभ हुआ। बेमिसाल संचालन करते हुए लेखक मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी ने हेमंत के जीवन और रचनाओं से जुड़े संस्मरणों को याद करते हुए सबसे पहले मंच पर वरिष्ठ शायरा कवयित्री नीता श्रीवास्तव को आमंत्रित किया। हेमंत की कविता "मेरे रहते" का पाठ करते हुए कहा

ऐसा कुछ भी नहीं होगा मेरे बाद/ जो नहीं हुआ मेरे रहते/ हां यह अजूबा जरूर होगा कि मेरी तस्वीर पर होगी चंदन की माला/ और सामने ,अगरबत्ती जो नहीं जली मेरे रहते।हेमंत रचनात्मक ऊर्जा से लबालब कल्पनाओं औऱ गम्भीर भावनाओं के समंदर में डूबते उतराते हुए शायद भाषा का एक किला गढ़ना चाहता था ! जिसके जाने से सचमुच हमने एक होनहार कवि खो दिया !

अंजना श्रीवास्तव ने हेमंत की कविता पतझड़ का पाठ किया यह सूखे से शाखों से रुठे से पत्ते /हवा में खड़कते लरजते ये पत्ते /बहारों में नाजुक सी कोपल में उभरे/ उंगली में शाखों की मरकज से पनपे/

हेमंत बहुत संवेदनशील कवि थे । इसीलिए उन्होंने प्रेम और मृत्यु दोनों ही जीवन के शाश्वत सत्य को अपनी कविताओं में ढाला। वरिष्ठ कवयित्री डॉ क्षमा पांडेय ने हेमंत की कविता "झूठे हैं दिन" का पाठ करते हुए कहा हेमंत की विविध कविताओं में प्रेरक संदेश दिखाई देता है। इतनी अल्पायु में दुनिया की समझदारी, सामाजिक माहौल, बेईमानी -ईमानदारी मानव मात्र के सुख- दुःख, स्त्री पुरुष के संबंधों आदि का अनुभव प्राप्त कर कविताओं में उसे शामिल करना उनकी श्रेष्ठ अनुभूति और प्रतिभावान साहित्यिक स्वभाव का परिचायक है।

वरिष्ठ लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने हेमंत की स्मृतियों को ताजा करते हुए बताया कि हेमंत नेत्रहीनों के लिए कार्य करना चाहता था और उसने मिलेनियम 21 इवेंट कंपनी की स्थापना भी की थी। मगर ईश्वर ने उसे यह अवसर नहीं दिया। वरिष्ठ लेखिका डॉ ज्योति गजभिए ने हेमंत की कविता "वह नन्हा "का पाठ करते हुए कहा आठ साल का वह नन्हा/कितना इंतजार करे/जिंदगी का /सुर्खाब के परों का/मीठे मचलते सपनों का /मां की लोरी और पिता के दुलार का/स्कूल की घंटी का/
खेल के मैदान का.....?/
आठ साल का वह नन्हा/
बन गया है/बाल मजदूर....... बाल मजदूर पर लिखी यह कविता सिद्ध करती है कि

उसने कम उम्र में ही जीवन-दर्शन को जान लिया था | जीवन और मृत्यु की गहराई को पहचान लिया था| उसकी विलक्षण दृष्टि ने समाज में जो असमानता है, अन्याय है उसे जान लिया था ,उसने इन बातों पर लेखनी और तूलिका दोनों चलाई जो कि अतिआवश्यक भी है ।

वरिष्ठ कवि अमर त्रिपाठी ने हेमंत की कविता "बसंत" सुनाई

बस थोड़ी बूंदाबांदी हो जाए /बच जाए फसल/ओलों से/अच्छे दाम बिक जाए/घर में भी/कुछ आ जाए /तो अब की जेठ/इसी सरसों से /बिटिया के हाथ/पीले कर दें। उन्होंने पिछले 19 वर्षों से मुम्बई में हेमंत स्मृति कविता सम्मान के आयोजन की जानकारी दी। किसको पुरस्कृत किया गया है तथा समारोह में कौन मुख्य अतिथि और अध्यक्ष होकर आए है इस सब का उल्लेख उन्होंने किया। प्रसिद्ध फिल्म एवं धारावाहिक अभिनेता राजेंद्र गुप्ता ने बहुत ही खूबसूरती से हेमंत की कविता "बस इतना "का पाठ किया

कार्तिक की जिन हवाओं ने /रात के सन्नाटे में आकर /मेरे कमरे में लगे /बिस्तर पर /हरसिंगार के फूल /बिखेरे थे /और सौंपी थी /तुम्हारे आने खुशबू ..........बेतरह।

वरिष्ठ कवयित्री ,शायरा रूपेंद्र राज ने कहा"मात्र 23 वर्ष की आयु में हेमंत कितने परिपक्व रहे, अपनी सोच और अपने विचारों को कलमवद्ध करके हमेशा के लिए अमर हो गये. सही ही कहा है किसी ने जिस्म मर जाते हैं लेकिन शब्द और विचार नहीं मरते.. आज हेमंत की एक कविता को लेकर भी उस पर यदि कोई चर्चा होती है तो हेमंत के विचारों को ही विस्तार देते हैं. उन्होंने हेमंत की कविता जीवनक्रम सुनाई--- हम सब इस त्रिकाल ठहरे जल में/ जलकुंभियों की तरह डोलते हैं/ हमारी जड़े जमीन में नहीं जातीं/ जल के ऊपर उतराती हैं /

फिर घोर आतप से /सब कुछ सूख जाता है /हम मरते नहीं /अपने अंदर जल का स्रोत छुपाए /धरती की कोख में छुपे रहते हैं /फिर मेह बरसता है /फिर धरती की दरार से हम /बाहर निकल आते हैं/जलकुंभी बन /पानी की सतह पर खिल पड़ते हैं /यही क्रम चलता रहता है /चलता रहेगा लगातार / धरती के अस्तित्व तक । वरिष्ठ लेखिका डॉ प्रमिला वर्मा ने हेमंत को याद करते हुए उसके जीवन के कई पहलुओं को प्रकट किया और बताया कि वह न केवल विलक्षण प्रतिभा संपन्न कवि बल्कि एक होनहार मातृ भक्त बेटा भी था। समकालीन कवि विजय कांत वर्मा ने हेमंत की कविता "धुँए की चुभन" सुनाई। तुम चुप थीं /मैं चुप था/बस एक गीली गर्माहट थी/हमारे बीच

हेमंत की कविताओं में ताकत है पाठक को अनायास ही अपने में डुबाने की।डूबने पर एक खिलते हुए फूल की पंखुडियों की तरह संवेदनाओं और सरोकारों के नये नये आयाम सामने आते हैं।उनकी कविताओं में। कभी
उदासी में जीवन की मुस्कुराती कोपलें छुपी मिल जाती हैं और कभी उमंग में व्यथा की ओस दिख जाती है। शब्द दर शब्द पंक्ति दर पंक्ति रूमानी रहस्य खुलता चला जाता है और अभिव्यक्ति के एक नये धरातल पर पहुंचा देता है।

वरिष्ठ कवयित्री, समीक्षक मधु सक्सेना ने हेमंत के कविता संग्रह मेरे रहते की समीक्षा करते हुए कहा जाने से पहले लिख गया ....समेट गया खुद को पन्नो में कि गाहे बगाहे आ कर कविता के बहाने से दो घड़ी बतिया सके । जो उसके बिना जीने की कल्पना भी नही कर सकते थे... उन्हें सहला दे ,आँसू पौछ दे ,चूम ले और जीवन का अर्थ समझा दे ।तभी तो कह दिया उसने --

हाँ तुम्हे जीना है /क्योकि मैंने तुम्हारी पलको पर सपने सजाये हैं /आओ आओ मेरी प्रिय /मिट जाने दो मुझे/
समकालीन युवा कवयित्री एवं हेमंत स्मृति कविता सम्मान से सम्मानित रीता दास राम ने अपने वक्तव्य में कहा
"हेमंत की कविताओं के कई शेड्स हैं जिनमें जीवन उतर आता है। रोष, कोमलता, अपनापन, सहलाहट, गंभीरता, सरोकार, सामाजिक घटनाएं हो या इतिहास परक टिप्पणियां सभी अपनी सटीक अभिव्यक्ति के साथ गुंथी हुई है।"
वरिष्ठ लेखिका डॉ सुषमा सिंह ने सभी कविताओं की समीक्षा की और सब के प्रति आभार माना। कार्यक्रम के समापन के पहले पूर्णिमा ढिल्लन ,अभिषेक जैन एवं निहाल चंद शिवहरे ने कविता सुनाकर हेमंत के प्रति अपने उद्गार प्रकट किए।
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