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उपन्यास “एस फार सिद्धि” पाठको के जहन में अमिट छाप छोड़ रहा

0 पुस्तक - एस फॉर सिद्धि (उपन्यास) 0 लेखक – संदीप तोमर                                                                      0 प्रकाशन वर्ष -2021 0 मूल्य -150 रूपये 0 प्रकाशक- डायमंड बुक्स, नई दिल्ली

0 समीक्षक  राजेन्द्र यादव ‘आज़ाद

एक उपन्यास, कहानीकार, कवि और समीक्षक के उपन्यास की समीक्षा लिखना अवश्य ही चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि उसके उपन्यास सभी मापदंडों पर समरसता बनाये रखते हैं। अपने पहले उपन्यास थ्री गर्लफ्रेंड्स उपन्यास से चर्चा में आए हिंदी साहित्य के  जाने-माने  लेखक संदीप तोमर का उपन्यास  “एस फार सिद्धि”  सभी पाठको के जहन में अमिट छाप छोड़ रहा है। “एस फार सिद्धि” संदीप  तोमर का चौथा उपन्यास है।

इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि आधुनिकता के परिवेश में बदलती हुई जीवन शैली, चिंतन, खानपान और रहन-सहन पर संदीप तोमर की गहरी पकड़ है। लेखक इन सभी अवयवों पर अपने उपन्यास के चरित्रों और घटनाओं के माध्यम से कहानी का तानाबाना बुनता है। वे प्रतीकात्मकता का प्रयोग करते हुए संकीर्ण मानसिकता और समाज में देह को इस्तेमाल करने वाले पुरुष वर्ग कलाम चलाते हुए स्वतंत्र चिंतन, स्वतन्त्र अभिव्यक्ति को पाठको के सम्मुख रखते हैं।

यौवनावस्था में जो सोंच और अभिलाषाएं जाग्रत होती हैं उसका हमारे व्यक्तित्व पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है जिसे लेखक ने ‘एस फॉर सिद्धि’ में विभिन्न पात्रों के माध्यम से एक वास्तविक रूप दिया है। इस उपन्यास में महानगरीय जीवन शैली से साथ छोटे शहरों में भी नायिका के तादात्म्य स्थापित करने की कहानी को लेखक बड़ी संजीदगी के साथ रखता है।

संदीप तोमर का उपन्यास “एस फॉर सिद्धि” 27 अध्यायों में विभाजित है यानी कि हम यह कह सकते हैं कि यह 27 अलग-अलग कहानियाँ है जो सिद्धि  नामक नायिका के जीवन को प्रतिबिम्बित करते हुए इस उपन्यास को पूर्णता की ओर ले जाती है। यह 27 कहानियाँ नायिका  सिद्धि की हैं जो अपने प्यार को अंजाम देती हैं । कई कहानियों को पढ़कर तो यह लगता है कि शायद यह हमारे आस-पास की ही घटित घटनाएँ हैं। उपन्यास  प्रारम्भ  में  पढते हुए  पाठक को  लगता है कि यह एक प्रेम कथा पर आधारित उपन्यास है लेकिन उपन्यास को अंत तक पढते हुए लगता है कि यह  एक प्रेम कथा नहीं बल्कि हमारे समाज में व्याप्त बुराइयों का चित्रण है जिसे लेखक ने सिद्धि के माध्यम से उजागर किया है। लेखक ने स्वयं भूमिका में कहा है-“उपन्यास में प्रेम के ताने-बाने को बुना अवश्य गया है लेकिन कहानी में प्रेम केन्द्रीय नहीं है, प्रेम के माध्यम से समाज के स्त्री के विभिन्न पक्षों को उसी के दृष्टिकोण से रखने का प्रयास  किया है। आमस्त्री के सवालों को सिद्धि के माध्यम से यहाँ उठाने को कोशिश की गयी है।“

एक प्रेयसी के अंतर्मन की पीड़ा के स्वर है सिद्धि  के एक-एक कहे वाक्य।   एक औरत कितने पुरुषों से धोखा खाती हैं उसके प्रेम जाल में फंस कर यह लेखक ने बखूबी दर्शाया है एस फार सिद्धि  उपन्यास में। सिद्धि  इस उपन्यास की वह नायिका  है जो है समाज की उन महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती जो इस बेरहम समाज में हालातों के चलते पग-पग पर जोखिम उठाते हुए  अपनी एक अलग पहचान  बनाती है। एक नारी जब समाज की बेडियों को काटकर अपनी राह चुनती है तो उसे समाज के दकियानूसी मानसिकता के लोगों का सामना करना पड़ता है। एक पुरुष जो मन में आए वह करें लेकिन जब एक औरत अपनी जिंदगी जीना चाहती है तो वह पग-पग पर सड़ी गली पुरुषवादी मानसिकता की शिकार होती है। उपन्यास का एक पात्र अनिकेत हैं जो एक बड़े बिजनेसमैन हैं वो सिद्धि से प्यार करते हैं, अपनी कैंसर से हुई मौत के समय वे सिद्धि को अपने ट्रस्ट का ट्रस्टी बनाता है। वह अपनी नायिका के उपन्यास ‘कमरा नंबर 204’ के प्रकाशन तक मौत से अकेला लड़ता है ताकि उसकी प्रियसी अपना उपन्यास पूरा कर सकें। सिद्धि अनिकेत की बिन ब्याही पत्नी है  जिसकी आंखों से प्रेमी की मौत के बाद आंसुओं का सैलाब उतर आता है, क्योंकि अनिकेत से उसका प्रेम आँय प्रेमियों से अलहदा है।

लेखक ने इस उपन्यास में आत्मकथ्यात्मक शैली का भरपूर प्रयोग किया है प्रतीत होता है जैसे वह सिद्धि कि कहानी स्वयं सिद्धि के रूप में प्रकट होकर कह रहा हो। ऐसा चित्रण पाठक को उपन्यास से आत्मसात होने को विवश कर देता है। संदीप तोमर कि कहानी कहने कि यह विशिष्ट शैली है कि वे चित्रात्मक खाका खींचते हैं, यह बात किसी स्थान पर मशहूर कहानीकार और अनुवादक सुभाष नीरव भी लेखक के बारे में कहते हैं। लेखक भी अपनी भूमिका में लिखता है- “चुनौती ये रही कि किसी नारी-पात्र की कहानी को आत्मकथ्यात्मक शैली में कैसे कहा जाए, स्वयं को नारी-पात्र बना कहानी कहने का जोखिम था, यानि लेडी व्लादिमीर नोबोकोव का पुनर्जन्म हो चुका था और उसकी परिणति थी उपन्यास “एस फॉर सिद्धि” के रूप में पाठकों को लोलिता का नया संस्करण पढने को मिलने वाला है। असल में मैंने एक ऐसे पात्र की कल्पना की, जिसका भातीय समाज में अस्तित्व होते हुए भी वह किसी बड़े से बड़े लेखक की कृति का हिस्सा नहीं बन पाया।“ इस उपन्यास की ये भी विशेषता है कि लेखक कथानक का बिखराव नहीं मालूम होने देता। सारे घटनाक्रम इस तरह पिरोए गए हैं कि वे पाठक को उपन्यास से संलिप्त रखते हैं।

उपन्यास में नायिका के साथ अलग-लग समय पर अलग-अलग पुरुष पात्र प्रवेश करते है। सिद्धि का उस सबके प्रति आकर्षण स्वाभाविक है। क्योंकि मन स्नेह को ढूंढता रहता है लेकिन सभी पुरुष पात्र सिद्धि से तादात्म्य स्थापित नहीं कर पाते।वे सभी अपनी पिपाषा को शांत केआर उससे किनारा करते जाते हैं, उपन्यस में अनिकेत एकमात्र पात्र है जो प्रेम कि परिभाषा पर खरा उतरता है। अनिकेत एक सरल व्यक्तित्व है, वह हृदय से स्पष्ट है उसका प्रेम इस बात में निहित है कि वह मरने से पूर्व सिद्धि के जीविकोपार्जन कि समुचित व्यवस्था करता है।

कैसा वैचित्रय है कि सभी पुरुष पात्र नायिका के मन कि थाह पाने से वंचित ही रहते हैं, लेकिन नायिका कि विशेषता है कि किसी भी पुरुष के सामने कमजोर पड़ती दिखाई नहीं देती है। और नायिका हर जगह पुरुष  पात्रों से इक्कीस है। कहा जा सकता है कि उपन्यासकार नायिका  को बहुत ही विशिष्ट नारी के तौर पर प्रस्तुत करते है, अमूमन देखा जाता है कि आत्मकथ्यात्मक उपन्यास में लेखक अनावश्यक महिमामंडन करके कृत्रिम माहौल बना देते हैं लेकिन संदीप ऐसा नहीं करते। वे नायिका की अच्छाई-बुराई दोनों को साथ लेकर लेखन कार्य को संपन्न करते हैं ।

सबसे विशेष है इस उपन्यास के कथाक्रम में एक निरंतरता है जो पाठकों को बांधे रखती है। कथा में कहीं भी ठहराव नहीं आता। कथोपकथन में स्वाभाविकता है। जहां तक भाषा-शैली का प्रश्न है, भाषा सरल, सुबोध और सुगम्य है, शैली में प्रवाह है। लेकिन अत्यधिक अङ्ग्रेज़ी भ्श के शब्दों का प्रयोग हिन्दी के पाठक को अवश्य ही चौंकाता है। उपन्यास में एक बात और है-लेखक ने “ अपने पहले उपन्यास थ्री गर्लफ़्रेंड्स” कि तरह ही इस उपन्यास में भी अत्यधिक चरित्रों को रखा हैहो सकता है ये कथानक कि मांग के हिसाब से रखे गए हों, लेकिन पाठक विभिन्न पात्रों के नामों को लेकर कई बार उलझता भी है। डायमंड बुक्स जैसे बड़े प्रतिष्ठान में भी उपन्यास में प्रूफ रीडिंग कि कमी खलती हैं, टंकण और संसोधनकर्ता को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता यहाँ भी अनुभव होती है।

कहना न होगा कि साहित्य-जगत में नायिका के दृष्टिकोण से आत्म्कथ्यात्मक उपन्यास कम ही देखने को नजर आते हैं, आज भी यौन सम्बन्धों को विषय बनाकर लिखें गए उपन्यासों में सामाजिक, राजनितिक और मनोवैज्ञानिक मापदंडो को नजरअंदाज किया जाता है लेकिन यहाँ ऐसा नहीं हुआ है, लेखक ने इन सब पर भरपूर फोकस करने का प्रयास किया है। लेखक के इस उपन्यास का साहित्य जगत में स्वागत किया जाना चाहिए। पन्यास आने वाले समय में बेस्टसेलर के रूप में प्रसिद्धि पाएगा ऐसा मेरा अनुमान है। संदीप तोमर को एक मार्मिक उपन्यास लिखने के लिए बहुत-बहुत बधाई।

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