० डॉ० मुक्ता ०
ऐ मन! निराश न हो
संशय के बादल छंट जाएंगे
समाप्त हो जाएगी समस्त दहशत
आशा के सुमन
मदमस्त हो लहलहाएंगे
आनंद बरसेगा चहुंओर
खुशी का आलम होगा
मलय वायु के झोंके
मन उपवन को महकाएंगे
भोर होते धरा
सिंदूरी हो जाएगी
मन मयूर गाएगा
सुनाई देंगे
कोयल के मधुर स्वर
पपीहा पिउ पिउ गाएगा
बरसेंगी खुशियां
घर आंगन में
बावरा मन हर्षाएगा
पक्षियों का कलरव सुन
मन मदमस्त हो जाएगा
फूलों पर मंडराती रंग-बिरंगी
तितलियों को देख
और भंवरों की गुनगुन सुन
गुलशन गुलज़ार हो जाएगा
हृदय कमल खिल जाएगा
ऐ मानव! अलौकिक सौंदर्य को निहार
और भुला दे कोरोना की दहशत को
सामना कर,सामना कर,सामना कर
वह तेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएगा
एक छोटा सा वायरस है
जिसने पूरे विश्व में तहलक़ा मचाया है
सब भ्रमित हैं
उसकी कारगुज़ारियों को देख
समझ बैठे हैं खुद को दुर्बल व साहसहीन
असहाय हो कर दिया है उन्होंने आत्म-समर्पण
और वह सिकंदर की भांति फैला रहा अपना साम्राज्य
परंतु कोरोना में नहीं इतना दम-ख़म
वह तुम्हारे असीम शौर्य के सम्मुख
पल भर भी नहीं ठहर पाएगा
दुम दबाकर तत्क्षण भाग जाएगा
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