0 डॉ• मुक्ता 0
ऐ! सृष्टि-नियंता
जग के पालनहार
तुमने बेटियों के क्यों बनाए दो घर
पिता के घर जन्मी,पली,बढ़ी
बरसों बाद उस अहाते से उखाड़
पति के आंगन में रोपित कर दी जाती
नयी मिट्टी, नयी खाद नयी आबोहवा
नये लोगों के बीच नये माहौल में
कहां पनप पाती
पति के घर को अपना समझ
सहेजती, संजोती, संवारती
कठपुतली की भांति नाचती
सबके आदेशों की अनुपालना करती
फिर भी सदा परायी समझी जाती
परिवार-जन सी• सी• टी• वी•
कैमरों की भांति
हर गतिविधि पर नज़रें गड़ाए रहते
हर अपराध के लिए
उसे कटघरे में खड़ा करते
जो उसने किया ही नहीं
परंतु दोषी वही ठहरायी जाती
अपना पक्ष रखने का अवसर
कहां उस मासूम को दिया जाता
सहसा घर से बे-दखल करने का फरमॉन सुन
वह मासूम ठगी-सी रह जाती
और खुदा से ग़ुहार लगाती
क्यों तुमने बनाए उसके लिए दो घर
बता तो सही...कहां है घर उसका
कैसी है उसकी नियति
ताउम्र वह पिता व पति
दोनों के घर में अजनबी समझी जाती
और कहीं भी सुक़ून नहीं पाती
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