लखनऊ । रिहाई मंच ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को झूठ नहीं बोलना चाहिए। सच्चाई तो सूबे की सड़कों पर चिंघाड़ मार रही है। आखिर जब आक्सीजन, बेड, दवा की कमी नहीं है तो क्या जनता सरकार को बदनाम करने के लिए अपनी सांसे तोड़ रही है। मुख्यमंत्री का यह कहना कि यूपी में ना के बराबर कोविड केस, सच्चाई से परे है। मुख्यमंत्री झूठ बोल रहे हैं, गलत बयानबाजी कर रहे हैं। उन्हें जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि राम भक्त हनुमान जीवन रक्षक संजीवनी के लिए पूरा पहाड़ ले आते हैं। लेकिन यहां खुद को राम भक्त कहने वालों और राम के नाम पर राजनीति करने वालों की सरकार में लोग आक्सीजन की कमी से तिल-तिल कर मर रहे हैं। आज देश के न्यायालय भी चुनाव आयोग से लेकर सरकार की भूमिका पर सवाल कर रहे हैं तो योगी आदित्यनाथ को चाहिए कि वह सभी से सामंजस्य कर इस आपदा की घड़ी में जीवन रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करें। सवाल है कि अगर केन्द्र ने कहा था कि आक्सीजन प्लांट लगाए जाएं तो क्यों नहीं लगाए गए। कोरोनो के नाम पर यह जनसंहार है, मानवता की हत्या है। लोग घंटो-घंटों लाइनों में खड़े होकर आक्सीजन लेने को मजबूर हैं। फिर भी बहुत मुश्किल से कुछ को ही मिल पाती है। सरकार की एजेंसियां पूरी तरह से विफल हैं जो इस विकराल स्थिति से सरकार को रुबरु नहीं करा रहीं। उल्टे लोगों का मास्क के नाम पर चालान किया जा रहा है। जब राजधानी इतनी बेहाल है तो गांव की तस्वीर क्या होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। लोग पैरासिटामाल जैसी आम दवाओं के लिए भी इस मेडिकल से उस मेडिकल हाल पर ठोकरें खा रहे हैं।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने पूछा कि पंचायत चुनाव में डयूटी पर लगे 135 शिक्षक-शिक्षामित्रों की मौत का जिम्मेदार कौन होगा, योगी आदित्यनाथ खुद बताएं। जिन शिक्षकों पर आने वाली नस्लों की बेहतरी का भार था, उनके परिवार का भार कौन उठाएगा।
उन्होंने आगे कहा कि चुनावी ड्यूटी में लगे 135 लोगों की मौत से यह अनुमान लगाना बहुत मुश्किल नहीं कि पूरी चुनावी प्रक्रिया में शामिल कितने नागरिकों की कोरोना संक्रमण के चलते जान चली गई होगी। गांवों में शुरुआती दौर में हो रही मौतों को लोग समझ ही नहीं पा रहे थे। बहुत बाद में गांवों के लोग कोरोना को जान-समझ पाए कि सांस की दिक्कत से होने वाली मौतों को रोकने के लिए आक्सीजन की जरुरत है। और फिर आक्सीजन के लिए अफरा-तफरी मच गई। लखनऊ में कोरोना से हो रही मौत के आंकड़ों और श्मशान-कब्रिस्तान पहुंचीं लाशों के आंकड़ों में भिन्नता मिली। अगर पूरे प्रदेश से दोनों मामलों के आंकड़े जमा किये जाएं तो पुष्टि हो जायेगी कि सरकार कोरोना से होनेवाली मौतों की वास्तविक संख्या छुपा रही है।
रिहाई मंच महासचिव ने कहा कि जांच के आभाव में बहुत सी मौतों को कोरोना संक्रमण की मौतों में नहीं जोड़ा जा रहा। तमाम लोग इस डर से कि कहीं उन्हें सामाजिक कटाव न झेलनी पड़े, छिपाते हैं कि उनके अपनों की मौत कोरोना से हुई। गांवों से आ रही सूचनाएं बताती हैं कि इधर मौतों की संख्या में अचानक तेज बढ़त हुई है। यह पता करने को कोई कोशिश नहीं है कि इन असामान्य मौतों के पीछे कितना कोरोना का हाथ है।
सरकार कह रही है कि अस्पताल में बेड है और प्राइवेट अस्पतालों में मुफ्त इलाज किया जाएगा। सच्चाई यह है कि लोगों को कोई जानकारी ही नहीं है कि अगर कोई बीमार होगा तो कैसे उसको इलाज, आक्सीजन आदि मिलेगा। ऐसे में सार्वजनिक रुप से विज्ञापन के माध्यम से जिलेवार अस्पतालों में बेड की संख्या, उसमें भरती होने की प्रक्रिया आदि को विज्ञापित किया जाए। जिससे भय का माहौल कमजोर हो और लोग अपनों की उचित चिकित्सा करा पाएं। यह भी देखा जा रहा है कि लोग अन्य बीमारियों के इलाज न मिलने के चलते भी परेशान हैं। ऐसे में तत्काल सभी ओपीडी व्यवस्थाएं शुरु की जाएं और एंबुलेंस का उचित प्रबंध किया जाए।
एक टिप्पणी भेजें