Halloween Costume ideas 2015

होली… रंगोत्सव


डॉ० मुक्ता ० 

होली...रंगोत्सव,ग़िले-शिक़वे मिटाने,पारस्परिक मनो-मालिन्य व वैमनस्य मिटाने का सुंदर उपक्रम; दूर कर देता है सभी रंजो-ग़म,बरसाता असंख्य खुशियां व अलौकिक आनंद,जिसमें सराबोर हो जाता तन,मन।यह वह पावन पर्व है,जिसमें अहं स्वाह हो जाताहै;सामाजिक कुरीतियां व अंधविश्वास दफ़न हो जाते हैं।

होली अर्थात् हम भगवान के हो लिए।हमारा तन,मन,धन,समय,संकल्प व समस्त सांसें...सब भगवान के लिए हैं,क्योंकि वे उसी द्वारा प्रदत्त हैं। होली का दूसरा अर्थ है, जो बात हो ली,सो होली अर्थात् अतीत-विगत लौट कर नहीं आता…पास्ट इज़ पास्ट।

होली अर्थात् पवित्रता ('प्यूरिटी' अथवा 'हिज़ होली नेस')ये तीनों अर्थ हमारे लिए बहुत कल्याणकारी हैं,अर्थवत्ता लिए हैं।सो!हम प्रभु-इच्छा को स्वीकार उसकी रज़ा को अपनी रज़ा स्वीकार,प्रसन्नता से जीवन जिएं। अतीत अथवा बीती बातों का चिंतन मत करें।जीवन को दिव्यता व अलौकिक ऊर्जा से भर, सत् मार्ग पर चलें।यही है...सच्ची पावन होली, जिसमें स्व-पर व राग-द्वेष का लेशमात्र भी स्थान नहीं होता।

होली के पावन त्योहार में,जिन तीन पात्रों का योगदान है,उनपर प्रस्तुत हैं मेरी तीन कविताएं... हिरण्यकशिपु,हिरण्याक्ष व प्रहलाद, जो 2007में प्रकाशित काव्य-संग्रह अस्मिता में प्रकाशित हुई हैं।प्रहलाद की बुआ होलिका का चित्रण प्रहलाद कविता में किया गया है।
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