० डॉ० मुक्ता ०
होली के दिन
मिटा दें मनो-मालिन्य
अतीत के रंजो-ग़म
मन में बसी
एक-दूसरे के प्रति कटुता
स्व-पर व राग-द्वेष का भाव
और बसा लें
एक नया आशियां
जहां न हो व्याप्त
मैं और तुम का भाव
केवल हो प्रेम का साम्राज्य
होली में जला दें अहम् को
ईर्ष्या व वैमनस्य भाव को
और सदा स्व में स्थित रहें
मन डूबा रहे अनहद-नाद में
बरसे अलौकिक आनंद
हम दैवीय गुणों
स्नेह,करुणा,त्याग
व परोपकार को संचित करें
पूर्ण समर्पण भाव हो मन में
स्वार्थ को तज
किसी से छल न करें
एक-दूसरे के लिये
जियें और मरें हम
अतीत की
दुष्प्रवृत्तियों को त्याग
नकारात्मक सोच को तज
निराशा के भावों को
होलिका संग दहन करें
ताकि पूरे जहान में
स्थापित हो जाये
शांति का साम्राज्य
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