राधिका और रत्नेश के पास बातें करने के विषय ही नहीं होते थे। दोनों पार्क में दोपहर ढले आ जाते थे और साँझ उतरने तक बेंच पर खामोश बैठे रहते थे। वे कभी आकाश को देखते, कभी पक्षियों को और कभी पेड़ों से गिरते पत्तों को।
एक दिन उनके पास आकर एक कुत्ता बैठ गया। वे जब तक बैठे रहे, कुत्ता भी बैठा रहा।प्रतिदिन यही होने लगा।दोनों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया।एक दिन राधिका ने पति का ध्यान कुत्ते की ओर दिलाया। दोनों को अच्छा लगने लगा। उन्होंने उसका नाम शोनू रखा।
शोनू उनके जीवन का अंग बन गया। राधिका उसके लिए चपातियाँ बनाकर लाती। रत्नेश बिस्किट के पैकेट ले आते।धीरे-धीरे वे शोनू से बातें करने लगे।रत्नेश उसे अपने जीवन की कोई घटना सुनाते।राधिका उसे गाकर गीत सुनाती। शोनू को लेकर दोनों भी आपस में बातें करने लगे। वर्षों पश्चात उनकी दिनचर्या में शोनू के कारण जीवंतता आ गई थी।
@ अशोक लव , फ़्लैट-363, सूर्या अपार्टमेंट, द्वारका, सेक्टर-6, द्वारका , नई दिल्ली-110075
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