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कविता // किसान उसकी असहायता ,विवशता


★★★ डॉ• मुक्ता

किसान ---अन्नदाता

कर्ज़ के बोझ तले दबा

दाने-दाने को मोहताज़

पत्नी व बच्चों को

भूख से बिलबिलाते देख

उसका कलेजा मुंह को आता

माता-पिता की

शून्य में ताकती आंखें

उसकी असहायता

विवशता को आंकती

और मौन रहकर

सब कुछ कह जातीं

वह अभागा

खून के आंसू पीता

और एक दिन आत्महत्या कर

अपनी जीवन लीला का अंत कर

असाध्य दु:खों से मुक्ति पा जाता

उसकी ब्याहता

इस बेदर्द जहान में अकेली

ज़िंदगी के थपेड़ों का

सामना करती

उसकी जीवन नैया

बीच भंवर डूबती-उतराती

हिचकोले खाती

बच्चों को भूख से बिलबिलाते

बूढ़े सास-ससुर को

दवा के अभाव में तड़पते देख

अपनी अस्मत का सौदा करती

‘बिकाऊ हूं

खरीद लो मुझे,क्या दोगे’

यह देख मन में

आक्रोश फूटता

कौन है दोषी

अपराधी ‘औ’ गुनाहग़ार

वह मासूम या हमारी सरकार के

तथाकथित स्वार्थी राजनेता

जो अपनी-अपनी रोटियां सेकते

बड़ी-बड़ी रेलियां करते

लोकसभा में मुद्दा उठाते

परंतु उनकी सुध नहीं लेते

और युगों-युगों से

यह सिलसिला चला आता

अमीर और अधिक अमीर

और गरीब कर्ज़ के

बोझ तले दबा जाता

यह अंतर भारत

और इंडिया में

स्पष्ट नज़र आता-----

यह फ़ासला निरंतर

बढ़ता चला जाता

जिसे देख

बावरा मन कुनमुनाता

परंतु कुछ भी करने में

स्वयं को असमर्थ पाता

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