पुस्तक-महानगरीय लघुकथाएँ संपादक-सत्यप्रकाश भारद्वाज और लज्जाराम राघव तरुण पृष्ठ-104, मूल्य-250 रू. प्रकाशन वर्ष-2020 प्रकाशक-भारद्वाज पब्लिकेशन्ज़, 615-गाँव व डाकघर-बांकनेर, समीप नरेला, दिल्ली
दिल्ली और एन.सी.आर. में रहने वाले लघुकथाकारों की लघुकथाओं को ‘महानगरीय लघुकथाएँ’ पुस्तक में संकलित किया गया है। संकलन के अंत में लघुकथा विधा के संबंध में विद्वानों, लघुकथाकारों और आलोचकों के विचारों को प्रस्तुत किया गया हैं, इनमें से प्रमुख हैं- विष्णु प्रभाकर, ब्रजकिशोर पाठक, अशोक लव, विक्रम-सोनी, योगराज प्रभाकर, डाॅ0 कमल किशोर गोयनका आदि। इन्हें पढ़कर इस विधा के संबंध में ज्ञानार्जन किया जा सकता है।
पुस्तक का संपादन-प्रकाशन सत्यप्रकाश भारद्वाज द्वारा किया गया है। संपादक के रूप में स्वर्गीय लज्जाराम राघव तरुण का नाम भी है, दुर्भाग्यवश वे पुस्तक पर कुछ कार्य करके के संसार को त्याग गए। इसी कारण इसके प्रकाशन का आर्थिक दायित्व भी सत्यप्रकाश भारद्वाज पर आ गया। यह प्रशंसनीय उदाहरण है कि पुस्तक में लज्जाराम राघव तरुण के नाम को प्रकाशित किया गया।
इस पुस्तक का प्रकाशन-संपादन श्रेष्ठ रूप में हुआ है। आवरण आकर्षक और सुंदर है। संकलन की लघुकथाओं को श्रेष्ठ, उत्कृष्ट और सामान्य श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। लघुकथा लिखना सरल-सा कार्य लगता है। वास्तव में ऐसा नहीं है। संकलन की कई लघुकथाओं को लघुकथा नहीं कहा जा सकता। ऐसा लगता है इनके लेखकों ने इस विधा को गंभीरता से नहीं लिया है। श्रेष्ठ लघुकथाएँ लिखने के लिए श्रेष्ठ लघुकथाओं को पढ़ना चाहिए। इस संकलन में अनेक लघुकथाएँ बहुत अच्छी है।, जिनका अध्ययन करके लघुकथा लिखना सीखा जा सकता है। इन श्रेष्ठ लघुकथाओं के कारण यह संकलन लघुकथा इतिहास में अपनी विशिष्ट पहचान बनाएगा।
‘महानगरीय लघुकथाएँ’ संकलन में वरिष्ठ लघुकथाकारों-अशोक लव, रामेश्वर कांबोज हिमांशु, महेश दर्पण, कमल चोपड़ा, मघुकांत, सुभाष नीरव, अशोक वर्मा, कुमार नरेंद्र, अशोक जैन, नरेंद्र गौड़, हरनाम शर्मा, कृष्णलता यादव, अनिल शूर आज़ाद, राजकुमार गौतम, कमल कपूर, बलराम अग्रवाल और डाॅ0 मुक्ता आदि की लघुकथाएँ सहज ही आकर्षित करती हैं। इनकी लघुकथआों को उदाहरण स्वरूप उद्घृत किया जा सकता है। इसी क्रम में सविता इंदू गुप्ता, आशा लता खत्री, केशव मोहन पांडेय, डाॅ0 सुषमा गुप्ता, सुदर्शन रत्नाकर, सुभाष चंदर, विजय
विभोर, सविता स्याल, मधुदीप, डाॅ0 इंदू गुप्ता और अंजू खरबंदा की लघुकथाएँ प्रभावित करती हैं। सत्यप्रकाश भारद्वाज, शोभना श्याम, डाॅ0 लक्ष्मी शंकर बाजपेयी, डाॅ0 अंजू दुआ ‘जैमिनी’ और शोभा रस्तोगी की लघुकथाएँ पठनीय हैं। इस संकलन की उपलब्धि के रूप में दो लघुकथाओं को उद्घुत किया जा सकता है- घुलाई युद्ध (अशोक लव) और गुडप (सुभाष नीरव)।
अशोक लव की लघुकथा ‘धुलाई युद्ध’ में कोरोना के कारण लोगों में व्याप्त भय और आतंक की मानसिकता में रह रहे व्यक्ति की मानसिकता का सूक्ष्म विश्लेषण और चित्रण किया गया है। मास्क, सैनेटाइज़र, सब्ज़ियों को धोना आदि के माध्यम से लेखक ने कोरोना से संक्रमित हो जाने की आशंका से पीड़ित नायक प्रत्यूष का चित्रण किया है। वह सब्ज़ियाँ-फल आदि लाकर बाल्टी में रखे गरम पानी से धो रहा है। उसे लगता है कि वह कोरोना से युद्ध कर रहा है। उसे कोरोना में रावण दिखता है और वह स्वयं राम बनकर उसे मार रहा है। कथ्य, शिल्प और भाषा-शैली की नवीनता के कारण यह लघुकथा कोरोना काल में जी रहे आमजन की मानसिकता दर्शाती है।
सुभाष नीरव की लघुकथा ‘गुडप’ लिव-इन रिलेशनशिप के खोखलेपन को दर्शाती है। लड़का-लड़की लिव-इन रिलेशनशिप में रहते-रहते एक-दूसरे से ऊब गए हैं। दोनों एक-दूसरे से छुटकारा पाने के उपाय तलाशते हैं। अंततः वे अलग हो ही जाते हैं। लेखक ने भारतीय संस्कृति के विरूद्ध की इस परंपरा पर अपरोक्ष रूप में तीव्र आघात किया है। यह लघुकथा अपनी शैली और प्रस्तुतिकरण के कारण प्रभावित करती है।
‘मेरी बात’ के अंतर्गत संपादक सत्यप्रकाश भारद्वाज ने लघुकथा विधा के महत्व और पुस्तक प्रकाशन की पृष्ठभूमि का उल्लेख किया है। संपादक का परिश्रम सार्थक हुआ है। दिल्ली और एन.सी.आर. के लघुकथाकारों को पढ़ना सुखद रहा।
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