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पुस्तक - "सही फैसला" बाल पाठकों के मनोरंजन के साथ-साथ जीवन के टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलने की भी युक्ति


सुरेखा शर्मा -समीक्षक ० 

पुस्तक -सही फैसला ( बाल कहानी संग्रह ) लेखक -- दर्शन सिंह 'आशट'
प्रकाशन विभाग --सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार (दिल्ली )
प्रथम संस्करण --2021 पृष्ठ संख्या --94 मूल्य --180 ₹

" अरे बेटा, ये मोर -पंख किस लिए ला रहे हो ? घर सजाना है क्या ?" रमन के दादा जी ने पिंटू से पूछा ।
" जी जी•••।" पिंटू झुंझला सा गया ।
"हाँ••हाँ बेटा बताओ । शरमा क्यों रहे हो ?"
आखिर पिंटू ने सच - सच बता दिया , " मैं इनके पंखों को अपनी पुस्तकों और कापियों में रखूँगा ।मेरी दादी जी बता रही थी कि ऐसा करने से पढाई अपने आप आने लगती है।पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती ।" ये सुनकर वे हँसने लगे और पिंटू से पूछने लगे , "बेटा तुम्हारी दादी जी कितनी पढ़ी-लिखी हैं ?"
" वह तो अनपढ़ हैं।" पिंटू ने जवाब दिया ।

उपर्युक्त पंक्तियाँ हैं बाल कहानी संग्रह 'सही फैसला' की कहानी 'किताबों में पंख' से ली गई हैं । जिसके लेखक हैं पंजाबी भाषा के जाने-माने बाल -साहित्यकार दर्शन सिंह 'आशट' । बाल कहानी संग्रह ' सही फैसला' 23 कहानियों को समेटे हुए है । इन कहानियों के माध्यम से लेखक ने बाल पाठकों को मनोरंजन के साथ -साथ जीवन के टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलने की भी युक्ति सुझाई है। जीवन में कैसी भी स्थति हो उससे कैसे निपटा जाए ये कहानियाँ सिखाती हैं। सभी कहानियों में सकारात्मक संदेश छिपा है ।

कहानी संग्रह की शीर्षक कहानी 'सही फैसला' कोरोना काल की भयावह स्थिति का आईना दिखाती है। जब बच्चों से लेकर बड़े -बुजुर्ग भी अपने घरों में कैद हो गये थे। भाई-बहन के प्यार के पावन पर्व राखी पर भाई की जिद्द देखकर बहन ने अपने भाई राहुल को समझाया कि इस महामारी में स्वयं को सुरक्षित रखना ज्यादा जरूरी है एक बार राखी न बाँधने से हमारा स्नेह कम नहीं होगा । अभी हमें किसी के भी संपर्क में नहीं आना चाहिए । भाई-बहन ने अपनी सूझबूझ का परिचय बखूबी दिया है ।

वर्तमान मे बालसाहित्य में एक बड़ी क्राति आई है।बालसाहित्य को विकसित करने में जिन रचनाकारों का उल्लेखनीय योगदान है उनमें से बहुमुखी प्रतिभा के धनी दर्शन सिंह 'आशट' पंजाबी भाषा के वृहद् रचनाकार हैं। उन्होंने बच्चों के लिए प्रचुर मात्रा में उत्कृष्ट बालसाहित्य की रचना की। बच्चों के लिए उत्कृष्ट कोटि का बालसाहित्य लिखकर हिन्दी व पंजाबी बालसाहित्य में अपना विशेष योगदान दिया है । छः बाल कहानी संग्रह के साथ-साथ उनके द्वारा बालसाहित्य पुस्तकों का संपादन भी किया गया है । हर्ष का विषय यह है कि 'सही फैसला ' बाल कहानी संग्रह का प्रकाशन 'सूचना और प्रसारण मंत्रालय'- भारत सरकार द्वारा किया गया है ।जो हम सब के लिए गर्व का विषय है। साहित्य जगत में उनका काम और नाम दोनों उल्लेखनीय है।जिनकी गणना पंजाब - हरियाणा के बाल साहित्यकारों में की जाती है। देखा जाए तो एक सफल और प्रतिष्ठित लेखक हैं , उनकी रचनाएँ कालजयी हैं,इन्हें पढ़ने की कोई उम्र-सीमा नहीं होती। ये रचनाएँ हर उम्र में सीख देती हैं।

बाल साहित्य के क्षेत्र में दृष्टि डाली जाए तो लेखक 'आशट' उसमें विशेष रूप से सक्रिय हैं। बच्चों के लिए उत्कृष्ट कोटि का बालसाहित्य पंजाबी व हिन्दी भाषा में लिखकर बाल साहित्य में अपना विशेष योगदान दिया है । बालकथाओं की बात करें तो मनोरंजन के साथ -साथ बच्चों को संदेश भी देती हैं। संग्रह की 'अनोखी संतान' कहानी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करती है।शीर्षकानुकूल कहानी संग्रह की श्रेष्ठ कहानी है। कहानी की कुछ पंक्तियाँ देखिए ---- 'पवन की बुआ उसे अपने साथ दिल्ली ले आई और उसे बताया कि, मैं इस बार तुम्हें अपनी सन्तान से मिलवाने लाई हूँ। '

"बुआ जी, आप की संतान? लेकिन आपने पहले तो कभी बताया ही नहीं।" पवन हैरान था। '' बुआ उसे एक खुले मैदान में ले गई और भाँति- भाँति के पौधे दिखाने लगी। सुरक्षा हेतु लोहे की जालियाँ लगी हुई थी साथ ही उन पर नेम प्लेट भी लगी हुई थी। नीम के पौधे पर लिखा हुआ था, 'पवन का बड़ा भाई नीम'। पीपल के पेड़ वाली प्लेट पर ' पवन का छोटा भाई पीपल, आगे बढ़े तो लिखा था, 'पवन की बड़ी दीदी इमली', कुछ और आगे बढ़े तो मुलाकात हुई 'पवन की छोटी बहन जामुन' से। इस प्रकार बरगद आम,बबूल के अन्य पौधों का भी पवन के साथ कोई- न- कोई रिश्ता दर्शाया गया था ।ये थी नि:सन्तान बुआ की 'अनोखी सन्तान' । कितने सहज व सरल भाषा में पौधों का महत्व बताया गया है ।

लेखक की रचनाओं में सहजता ,स्वाभाविकता एवं मौलिकता देखने को मिलती है।इसमें कोई सन्देह नहीं कि बाल्यावस्था से ही बच्चों में संस्कार रूपी बीज साहित्य द्वारा ही रोपित किए जा सकते हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि बालसाहित्य सृजन कोई सरल कार्य नहीं है । बालसाहित्य की रचना करते समय बालमन को समझकर स्वयं को बच्चा बनाना पड़ता है। बच्चों की प्रकृति,उनकी कल्पना, उनकी आकांक्षा, उनके सपनों को केंद्र में रखकर किया जाता है। बालसाहित्य मात्र मनोरंजन का साधन नहीं है अपितु बालसाहित्य का उद्देश्य है बच्चे को मानवीय गुणों से परिपूर्ण करना।

कहानी 'सपने का सबक' संदेश परक होने के साथ-साथ रोचक कहानी है । शरारती रमन अपने जन्मदिन पर शरारत करने के अलग -अलग तरीके सोच रहा था। लेकिन उनके विपरीत परिणाम क्या होंगे ये सोचने का तो समय ही नहीं था उसके पास । दिन रात इसी उधेड़बुन में रहता कि इस बार नया क्या किया जाए ? सोचते-सोचते सो जाने पर सपने में आगामी योजना और परिणाम सामने आए तो हड़बड़ा कर जाग उठा । घबराकर सोचने लगा कि शुक्र है ये सपना था असलियत नहीं थी। मन ही मन प्रण किया किया कि वह कभी ऐसी शरारत नहीं करेगा। इसी कड़ी में 'संदेश ' , नए साल की खुशी, लौट आई हरियाली, दोस्ती का मतलब, बड़ा कौन ?' कहानियाँ नैतिक शिक्षा देनें के साथ -साथ ज्ञानवर्धन भी करती हैं।

कल की कहानी व आज की कहानी में बहुत अंतर आ गया है।आज राजा-रानी, परियों व काल्पनिक कहानियों का स्थान वास्तविकता से परिचय करवाती कहानियों ने ले लिया है । आज के बच्चों को तिलिस्म आकर्षित नहीं करता जितना अपने आसपास का वातावरण व छोटी छोटी घटनाएँ आकर्षित करती हैं।सीधे-सीधे व सरल शब्दों में जो कहानी कही जाए वही श्रेष्ठ होती है। बाल मनोविज्ञान पर आधारित ये कहानियाँ बालोपयोगी,शिक्षाप्रद, प्रेरित करने वाली हैं। 'लोहड़ी ' कहानी इसी तरह की कहानी है। बच्चों को लोहड़ी में खाने पीने की वस्तुओं के साथ-साथ एक- एक पौधा देने की परम्परा शुरू की गई जिससे बच्चों को पौधों के महत्व का पता चला।

ये बाल कहानियाँ 21 वीं सदी की हैं। कहानियों में जीवन व समाज निर्माण की बातें कही गईं हैं संग्रह की पहली कहानी 'चहल-पहल' पशु -पक्षियों,जीव -जंतुओं की कहानी है।जिसके माध्यम से बताया गया है कि कोरोना महामारी में जहाँ मनुष्य नाम के प्राणी बहुत दुखी थे वहीं दूसरी ओर स्वच्छ पानी, स्वच्छ वायु मिलने से जीव जंतु खुश थे। क्योंकि मनुष्य लगातार कई वर्षों से अंधाधुंध पेड़ो की कटाई कर पर्यावरण दूषित जो कर रहा था उसी का परिणाम था महामारी का फैलना। पुस्तकों के माध्यम से नैतिक शिक्षा देना बालसाहित्यकार का कर्तव्य बन जाता है कि वह उन्हें सत्साहित्य पठन के लिए उपलब्ध कराए।बालसाहित्य बच्चों का मित्र होता है, खिलौने की भाँति होता है ताकि बच्चा उसे पढ़कर खुशी अनुभव करे। आज दुख की बात ये भी है कि बालसाहित्य लिखा तो बहुत जा रहा है पर बच्चों तक कितना पहुँचता है इस पर विचार करना होगा ।

लेखक दर्शन सिंह आशट की बालकथाएँ इस कसौटी पर खरी उतरती हैं जो शिक्षाप्रद होने के साथ -साथ बच्चों का मनोबल बढ़ाने में भी सक्षम हैं। कहानियों के साथ चित्रित किए गए चित्रों ने कहानियों को और अधिक रूचिकर बना दिया है । सभी कहानियों का कथानक व संदेश आज के परिवेश में जी रहे बच्चों के साथ -साथ सभी के लिए अनुकरणीय है । शारीरिक विकास के लिए बच्चों को जैसे पौष्टिक आहार की जरूरत होती है, उसी प्रकार बौद्धिक ,मानसिक व चारित्रिक विकास के लिए उत्कृष्ट बालसाहित्य की आवश्यकता होती है ;चूंकि बच्चे कच्चे घड़े के समान होते हैं,अतः प्रारंभ से ही उन्हें ऐसा साहित्य देना चाहिए, जो उनके सर्वांगीण विकास में सहायक बन सके और मनोरंजन के साथ -साथ उनका मार्गदर्शन भी कर सके। बालसाहित्यकार दर्शन सिंह आशट द्वारा रचित बालसाहित्य इस कसौटी पर खरा उतरता है ।लेखक को बधाई ,माँ वीणापाणि की कृपा से उनकी लेखनी अनवरत चलती रहे। शुभकामनाएँ--
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