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लखनऊ के बच्चों ने दिखाया 'अल्फा' साक्षरता कौशल, भारत को शत-प्रतिशत साक्षर बनाने की मांग

० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली,  लखनऊ से चलकर देश की राजधानी पहुंचे, किंडरगार्टन से ग्रेड 2 तक के एक दर्जन नन्हें-मुन्नों ने बुधवार को यहां प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मीडिया से बातचीत की। उनकी मांग है कि भारत के सभी बच्चों के लिए शत-प्रतिशत साक्षरता सुनिश्चित की जाए। लखनऊ के नन्हें दूतों ने अंग्रेजी व हिंदी के समाचार पत्र तेजी से पढ़ने का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने वन-ग्रेड-अप गणितीय कौशल का भी प्रदर्शन किया, जिसे देखकर सभी अवाक रह गए।

प्रेस वार्ता में प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं इनोवेटर, डॉ. सुनीता गांधी मौजूद थीं, जो कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी यूके से भौतिकी में पीएचडी हैं; और वर्ल्ड बैंक की पूर्व अर्थशास्त्री हैं। उन्होंने अपने एक अद्वितीय शिक्षण कार्यक्रम का विवरण दिया, जिससे इन बच्चों के बेसिक और संख्यात्मक कौशल को सुधारने में मदद मिली। डॉ. गांधी ने कहा, "इन बच्चों ने तीन महीने में केवल 30 घंटों के अंदर साक्षरता और संख्यात्मक कौशल विकसित किया है, और फिर उन्होंने इसका खूब अभ्यास किया। यह तब है जब देश भर के स्कूलों में दो साल की पढ़ाई का नुकसान हो चुका है। इन स्किल्स को तेजी से हासिल करने के लिए, बच्चों ने ग्लोबल ड्रीम टूलकिट की रिवर्स पद्धति और सभी के लिए जोड़ी बनाकर तेजी से सीखने की एक प्रक्रिया यानी अल्फा का उपयोग किया।"
डॉ. गांधी ने ग्लोबल ड्रीम एक्सेलेरेटिंग लर्निंग फॉर ऑल (अल्फा) नामक फास्ट ट्रैक शैक्षिक अध्यापन विधि का विवरण मीडिया को दिया। "अल्फा एकदम अलग पद्धति है। इसमें हम अक्षर नहीं पढ़ाते, बल्कि सीधे शब्दों पर जाते हैं। अक्षरों को बच्चे खुद डिकोड करते हैं, शिक्षक उन्हें नहीं पढ़ाते, बल्कि सिर्फ उनकी मदद करते हैं," डॉ. गांधी ने कहा।

डॉ. सुनीता ने आगे कहा, "अल्फा शिक्षा पद्धति का विकास झुग्गी बस्तियों और सरकारी स्कूलों में बच्चों के साथ काम करते समय हुआ। इसे हाल ही में बजट निजी स्कूलों जैसे सिटी इंटरनेशनल स्कूल (सीआईएस), लखनऊ में लागू किया गया, जोकि एक सीबीएसई के12 स्कूल है और जिसे शिक्षा में शोध कार्य करने के लिए मैंने शुरू किया था। सीआईएस में 34 कोविड के दौरान अनाथ हुए बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जा रही है और इसमें कई बच्चों की पूरी फीस माफ है या उन्हें फीस में काफी रियायत दी गई है। इसके छात्र सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं और कई को अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश मिल रहा है।” उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव, आलोक रंजन ने एक बयान में कहा: "जब मैं बच्चों के स्कूल यानी सीआईएस के गलियारे में था, तो मैं विभिन्न कक्षाओं में गया और इन बच्चों से बात की और उन्हें पढ़ने को कहा। वे धाराप्रवाह पढ़ रहे थे जैसे कि अभी वे आपके सामने पढ़ रहे हैं। यह बेहद महत्वपूर्ण है।”

अल्फा शिक्षण विधि की जनक, डॉ. सुनीता गांधी ने आगे कहा, "शिक्षा में मुख्य समस्या गति की होती है। यदि बच्चे तेजी से सीखने लगें, तो भारत वर्षों में नहीं, बल्कि कुछ महीनों में ही साक्षर हो सकता है। हमें अभी शुरुआत करने की जरूरत है। अगर एक और वर्ष तेजी से पढ़ाई नहीं हुई तो बहुत बुरा हो सकता है। अच्छी खबर यह है कि मार्च 2023 में राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वे होना है, ऐसे में हम ग्लोबल ड्रीम का उपयोग करके नाटकीय परिणाम पा सकते हैं। इस सवाल पर कि पुराने शिक्षक नए नतीजे कैसे देंगे, डॉ. गांधी ने कहा, "जब शिक्षक तेज परिणाम देखते हैं, तो वे प्रोत्साहित होते हैं। फिर उनकी धारणा बदल जाती है। शिक्षकों को पुरानी तरह से प्रशिक्षित करने की बजाय, करते हुए सीखने की कोशिश की जा सकती है। अल्फा प्रॉम्प्ट्स एक क्रैश कोर्स है, जो शिक्षकों के लिए पहले कभी नहीं था, और इसकी तत्काल आवश्यकता है।”

इन तरीकों का उपयोग करने वाली एक शिक्षिका, मेनका शर्मा ने कहा, "ग्लोबल ड्रीम ने हमारे काम को आसान बना दिया है, और इससे बच्चे प्रभावी तरह से सीख पाते हैं। अब हम पुराने और थकाऊ तरीके पर वापस नहीं जा सकते।" बच्चों के साथ उनके माता-पिता भी थे। पांच साल की रिधिमा की मां, कनिका जैन ने कहा, 'यह जादू की तरह काम कर रहा है। बच्चे कई गुना ज्यादा सीखते और समझते हैं। काश भारत के सभी बच्चे इस तरह सीख पाते। मेरा बच्चा तो बदलाव का दूत बन गया है।”
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