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"नमामि गंगे संस्कृति सम्मान" से सम्मानित हुए लेखक पार्थसारथि थपलियाल


० योगेश भट्ट ० 

नयी दिल्ली - गंगा, गीता, गायत्री और गाय के बिना भारतीय जंस्कृति की कल्पना भी नही की जा सकती। गंगा भारतीय संस्कृति का प्रवाह है। यह पुण्यदायी नदी मानुष्यों के पाप तो धोती है है देश के बड़े भूभाग को सींचती भी है और प्यास भी बुझाती है। यह विचार भारत के मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्री परशोत्तम रुपाला ने नमामि गंगे संस्कृति सामान समारोह में सांस्कृतिक लेखकों को सम्मानित करते हुए रखे। नेहा प्रकाशन और एंजिल वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केन्द्र में गंगा तेरा पानी अमृत में प्रकाशित लेखों सहित भारतीय संस्कृति को बढ़ाने के लिए लिखनेवाले विद्वान लेखकों को सम्मानित करने के लिए आयोजित किया गया था।

संम्मानित होने वाले लेखकों में शामिल थे- गोवर्धन थपलियाल, डॉ. मोहसिन वली, कमल, डॉ. कामाक्षी, डॉ. शैलेन्द्र कुमार, मदन थपलियाल, डॉ. मधु के श्रीवास्तव, पार्थसारथि थपलियाल, व्योमेश जुगरान, मनोज गहतोड़ी, जगदीश कुकरेती, कुलदीप कुमार, अरविंद सारस्वत, डॉ. देवदत्त शर्मा (सोलन), कपिलदेव प्रसाद दुबे, अशोक शुक्ला और प्रदीप भारद्वाज। इस अवसर पर मंच पर शोभायमान थे मुख्यातिथि परशोत्तम रूपला केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्री, विशिष्ट अतिथि थे प्रोफेसर देवी प्रसाद त्रिपाठी, कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार, डॉ. मोहसिन वली (पद्मश्री), डॉ.एना सिंघानिया। सम्मानित लेखकों को प्रशस्ति पट, शॉल और पुष्पगुच्छ प्रदान कर सम्मानित किया।

गंगा तेरा पानी अमृत एक शोध पुस्तक है जिसमें पतित पावन माँ गंगा के पौराणिक आख्यानों से लेकर नमामि गंगे मिशन तक के हर पहलू पर पठनीय लेख है। डॉ. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने गंगा के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।इस पुस्तक की संपादक डॉ. मधु के श्रीवास्तव और परामर्शदाता मदन थपलियाल हैं। खचा खच भरे सभाग्रह में तालियों की गड़गड़ाहट के मध्य लेखकों ने मुख्यातिथि से सम्मान प्राप्त किया।
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