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हस्तनिर्मित कपड़ों पर जीएसटी वृद्धि को वापस लेने की मांग


० आशा पटेल ० 

जयपुर - जनवरी 2022 से भारत में जीएसटी परिषद का कपड़ा और लिबास पर कर का 5% से बढ़ाकर 12% करने का निर्णय, देश के सैकड़ों हस्तनिर्मित लघु उद्योगों और बुनकरों की आजीविका को खतरे में डाल देगा। विभिन्न अनुमानों के अनुसार, भारत में 1.4 से 4 करोड़ लोग हथकरघा के माध्यम से अपनी आजीविका कमाते हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा हस्तनिर्मित वस्त्रों पर केंद्रित है जो हाथ से बुने हुए, या हाथ से अलंकृत होते हैं।
 हस्तनिर्मित कपड़े और वस्त्र हमारे देश में लाखों लोगों के लिए वित्तीय और सांस्कृतिक जीवन रेखा है और इसमें ज़्यादातर ग्रामीण महिलाऐं शामिल हैं, जो प्रति माह 5000 रुपये से कम कमाती हैं। जीएसटी के दायरे में लाए जाने पर इन दस्तकारों को पहला झटका लगा। हिसाब किताब और जीएसटी दाखिल करने की जानकारी ना रखते हुए, उन्हें अपनी छोटी सी आमदनी में से इससे निपटने के लिए पेशेवरों अकाउंटेंट को भुगतान शुरू करना पड़ा।

 दस्तकार हमारी अमूल्य सांस्कृतिक विरासत को ज़िंदा रखने में मदद करते हैं। हस्तनिर्मित  कपड़ा बनाने के लिए  ज़्यादा बिजली नहीं लगती है।  इसके लिए कुछ संसाधनों की ही आवश्यकता होती है और बहुत कम कार्बन पदचिह्न के साथ पूरा उत्पादन हो जाता है। अधिकांश कच्चे माल प्रकृति से प्राप्त होते हैं और इलेक्ट्रिक मशीनों का उपयोग लगभग शून्य है।

कोरोना की महामारी की वजह से कीमतों में वृद्धि और घटती हुई मांग ने वैसे भी बुनकरों और दस्तकारों की आमदनी बहुत कम कर दी है I अब जीएसटी बढ़ाना इस उद्योग को ख़त्म कर देगा।  यह सिर्फ हस्तकरघा उद्योग का उत्पादन ही कम नहीं करेगा बल्कि पहले से ही प्रचलित मशीन-निर्मित नकल करे हुए सामान के मुक़ाबले को और मुश्किल कर देगा।  यह जीएसटी वृद्धि सरकार के अपने ही राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (7 अगस्त, 2020) को शुरू हुए  Vocal4Handmade अभियान के विरुद्ध है। इसमे बोला गया था की "सभी हितधारकों के साथ साझेदारी में, भारत की हथकरघा विरासत को बढ़ावा देने और बुनाई समुदाय के लिए लोगों के समर्थन को सुनिश्चित करने के लिए" यह अभियान शुरू करा जा रहा है।

हथकरघा और दस्तकारी काम , वर्षों से न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्तंभों में से एक रहे हैं, बल्कि हमारे देश की सांस्कृतिक परंपरा को भी संरक्षित करते हैं । आज, यह उद्योग असुरक्षित और उपेक्षित है और भारत के नागरिक, जीएसटी परिषद से लाखों कारीगरों और भारत की सांस्कृतिक विरासत की आजीविका की रक्षा के लिए सभी हस्तनिर्मित कपड़ों पर जीएसटी वृद्धि को वापस लेने की अपील करते हैं।                                                     
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