० नूरुद्दीन अंसारी ०
नई दिल्ली: आकाश हेल्थकेयर सुपर सुपरस्पेशलटी हॉस्पिटल, द्वारका में डॉक्टरों की एक टीम ने एक 3 साल के बच्चे में क्रिकेट बॉल के दुगुने आकार के ब्रेन ट्यूमर का सफलतापूर्वक इलाज करके बच्चे की जान बचायी। ट्यूमर को निकालने के लिए नौ घंटे तक क्रिटिकल माइक्रोस्कोपिक सर्जरी चली। ट्यूमर निकालने की यह प्रक्रिया काफी चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि डॉक्टरों को पतली मस्तिष्क की धमनियों को इस सर्जरी के दौरान नुकसान नहीं पहुंचाना था, ये धमनिया 7 सेंटीमीटर लंबे ट्यूमर के नीचे आ गई थीं।
मरीज का नाम मास्टर असाडबेक था, जो उज्बेकिस्तान से आकाश हेल्थकेयर में इलाज कराने आया था। यहाँ पर आकाश हेल्थकेयर न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट हेड और सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर नागेश चंद्रा ओपीडी विजिट के दौरान मरीज के पिता को परामर्श देने के बाद उज्बेकिस्तान से द्वारका के आकाश हॉस्पिटल में लाया गया। मरीज के मस्तिष्क में बड़े पैमाने पर ट्यूमर होने से उसे कई बार मिर्गी के दौरे पड़ते थे और उसे चलने में कठिनाई होती थी। बच्चे के माता-पिता डरे हुए थे क्योंकि उन्होंने कई जगहों पर कंसल्ट किया था और उन्हें बताया गया था कि अगर बच्चे की सर्जरी हुई तो उसकी मौत या उसमे स्थायी तौर पर विकलांगता होने की बहुत ज्यादा संभावना है। माइक्रोस्कोपिक तकनीक मरीजों को जल्दी ठीक होने, सर्जरी के बाद कम दर्द और अस्पताल में रहने के समय को कम करने और घाव में संक्रमण होने की संभावना को लगभग नगण्य करने में मदद करता है।
इस केस के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ नागेश चंद्रा ने कहा, "हमने ट्यूमर को निकालने के लिए माइक्रोस्कोपिक सर्जरी की। यह एक कठिन और मुश्किल केस था क्योंकि मस्तिष्क की प्रमुख धमनियां ट्यूमर के नीचे दब गयी थी। ये धमनियां खून को मस्तिष्क के शेष भाग में पहुंचाती हैं। हमें सर्जरी के दौरान उन धमनियों को सुरक्षित रखना था ताकि मस्तिष्क का बचा हुआ हिस्सा काम करता रहे। सर्जरी न्यूरोनेविगेशन सिस्टम के तहत की गई। इस सिस्टम के जरिये हमें इन धमनियों पर नज़र रखने में सहूलियत मिलती है। बच्चा अब दौरे से छुटकारा पा चुका है। वह हर जगह दौड़ता है, बात करता है, और सामान्य रूप से खाता है। वह हँसता मुस्कुराता है, उनकी मुस्कान सबसे प्यारी है। उनका ट्यूमर एक वैस्कुलर ट्यूमर था, जिसमें ज्यादा खून बहता है। हालांकि इस तरह की मुश्किल सर्जरी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा ऐसे छोटे बच्चे के लिए न्यूरोएनेस्थीसिया होता है।"
आकाश हेल्थकेयर के न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के कंसल्टेंट डॉ जितेन्द्र कुमार ने इस केस पर अपनी राय रखते हुए कहा,"माइक्रोस्कोपिक सर्जरी तकनीकी रूप से ज्यादा सुरक्षित रहती है कि इसके लिए विशेष उपकरण, महत्वपूर्ण सर्जिकलस्पेशिलिटी की जरुरत होती है। हालांकि यह सभी प्रकार के ट्यूमर के लिए उपयुक्त नहीं होती है। इस केस में हमारा लक्ष्य ट्यूमर को ज्यादा से ज्यादा हटाना और ब्रेन के महत्वपूर्ण संरचनाओं में कम हेरफेर करना था, जिससे कॉम्प्लिकेशन और मरीज में विकलांगता से बचा जा सके, जबकि ज्यादा तेजी से, पूर्ण और रिकवरी रेट बढ़ावा दिया जा सके।"
डॉ जितेन्हुद्एर कुमार ने आगे कहा,"ट्यूमर के वैस्कुलर प्रकृति के कारण बहुत ज्यादा खून बह गया था। बच्चे को ब्लड ट्रांसफ्यूजन की कई यूनिट दी गयी और एक छोटे बच्चे में खून और अन्य चीजों को ट्रांसफ्यूज करना अपने आप में एक चुनौती है और इससे विभिन्न विनाशकारी समस्याएं हो सकती हैं। भगवान की कृपा से सर्जरी के 6 घंटे बाद बिना किसी ट्रांसफ्यूजन की बड़ी कॉम्प्लिकेशन से न्यूरोलॉजिकल रूप से बरकरार रहने के बाद वह होश में वापस आ गया। चूंकि हमारे पास इस तरह के केसेस के लिए जरूरी हाई एंड उपकरण और हाई स्पेसिल्टी वाली डॉक्टरों की टीम है, इसलिए हमने इस सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। हम ऐसी कई जटिल न्यूरो प्रक्रियाओं को नियमित रूप से करते रहे हैं। जब दिल्ली में न्यूरो केयर की बात आती है तो हम सबसे अच्छे हॉस्पिटल में से एक गिने जाते हैं। मुझे इस बात की ख़ुशी है।"
डॉ नागेश और उनकी टीम के पास पिछले एक दशक में इस तरह की प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए एंडोस्कोपिक और माइक्रोस्कोपिक दोनों का व्यापक अनुभव और स्पेशिलिटी है। इस प्रक्रिया में मदद हेतु सर्वश्रेष्ठ न्यूरो एनेस्थीसिया टीम की उपलब्ध होना बहुत जरूरी होता है। इस तरह के केसेस में तकनीकी रूप से एडवांस मेडिकल फैसिलिटी की आवश्यकता होती है।
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