झाबुआ - मामा बालेश्वरदयाल की 26 दिसम्बर को 23 वीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर मामा बालेश्वरदयाल जी के अनुयायियों द्वारा भील आश्रम बामनिया, झाबुआ में कार्यक्रम हर वर्ष की तरह आयोजित किया जाएगा। 25 हज़ार से अधिक आदिवासी हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी कड़कती सर्दी में राजस्थान से 22दिसंबर से पदयात्रा शुरू कर 25 की रात्रि को बामनिया आश्रम पहुंचेंगे।
मैंने मामाजी के जन्मशताब्दी वर्ष में प्रदेश के 48 जिलों की 15,000 किलोमीटर की समता यात्रा भी निकाली थी। समता मात्रा का शुभारंभ मामा जी की जन्मस्थली निवाड़ीकला (इटावा) से हुआ था। आश्चर्यजनिक तौर पर निवाड़ीकला में मामाजी के जीवन भर के कार्यों को जानने वालों की संख्या नगण्य थी।मामाजी ने कभी जाति सूचक नाम का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन निवाड़ी कला( इटावा) जाने पर मामा बालेश्वर दयाल दीक्षित बताने के बाद ही गांव के लोग जान सके कि उनके ही दीक्षितजी का जन्म शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है।
ग्रामवासियों को यह जानकर अचरण हुआ कि मामाजी को झाबुआ (म.प्र.), बांसवाड़ा (राजस्थान), पंचमहल (गुजरात) के आदिवासी 150 से अधिक मंदिर बनाकर उन्हें देवता की तरह पूजते है। कई स्थानों पर मामाजी के कई मंदिरों में रोजाना आरती की जाती है। हर फसल आने पर पहले फसल मामाजी की मूर्ति के समक्ष चढ़ाई जाती है। बाद में उसका इस्तेमाल आदिवासी करते है। साल में दो बार आदिवासी बिना किसी के आमंत्रण पर भील आश्रम में इकट्ठा होते है। एक दिन जन्मदिवस रामनवमी के अवसर पर, दूसरा निर्वाण दिवस 26 दिसम्बर पर। हॉलाकि जन्मदिवस मामा जी द्वारा दिये गये शपथ पत्र में 10 मार्च है। हॉलाकि आदिवासी रामनवमी को ही मामाजी की जयंती मनाते है। निवाड़ीकला वासियों मामाजी के बारे में जानकारी का अभाव इसलिये समझा जा सकता है क्योंकि इटावा कॉलेज से अंग्रेज प्रिंसीपल द्वारा चन्द्रशेखर आजाद का बिल्ला लगाने के कारण कॉलेज से निकाले जाने के बाद उन्होंने गांव से बहुत कम संपर्क रखा।
हालांकि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव ने लखनऊ में लोहिया पार्क बनाकर 6 समाजवादी नेताओं को प्रेरणा स्त्रोत के तौर पर दर्शाया है उनमें डॉ. लोहिया के साथ मामा बालेश्वर दयाल का जीवन परिचय तथा आदमकद मूर्ति स्थापित की है। उन्होंने एक बार मुझे फोन कर कार्यालय और निवास के लिए फोटो बुलवाए थे,जो राजेश बैरागी ने लखनऊ पहुंचाए थे।
भाजपा सरकार का रवैया तो इसी तथ्य से स्पष्ट हो जाता है वे मामाजी की एक मूर्ति जिलाधीश कार्यालय में लगाने को तैयार नहीं है। हालांकि मामा के अनुयायियों द्वारा सरकार को यह प्रस्ताव भी दिया गया था कि सरकार के पास यदि मुर्ति स्थापना के लिये संसाधनों की कमी हो तो नागरिक चंदा करके मुर्ति स्थापना के लिये तैयार है। परंतु अब तक मुर्ति लगाने के लिये भूमि आवंटित करने को भी भाजपा सरकार तैयार नहीं है। भाजपा लगातार नक्सलवाद एवं धर्मांतरण का मुद्दा उठाती रही है। क्या भाजपा का नेतृत्व और सरकार यह नहीं जानते कि यदि मामाजी ने भील अंचल में अहिंसा और सत्याग्रह का पाठ भीलों को नहीं पढ़ाया होता तो भीलांचल नक्सलवाद के गिरफ्त में चला गया होता?
उल्लेखनीय है मामाजी ने गोली चालन के खिलाफ दाहौद में दो किसानों की मौत जागीरदारों की पुलिस द्वारा गोली चलाये जाने के परिणाम स्वरूप गोली चालन की जाँच के लिये नेता सुभाषचन्द्र बोस तथा आचार्य नरेन्द्र देव को बुलवाया था। तथा जाँच रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेजों ने जागीरदारों की पुलिस से गोली चालन के अधिकार छीन लिये थे।
मामाजी के संबंध में यह भी कहा जाता है कि यदि मामाजी नहीं होते तो पूरा भीलांचल धर्मातरण कर लेता। मामाजी के सामाजिक आर्थिक बदलाव के पक्षधर थे। ताकि कोई लोभ, लालच या दबाव धर्मांतरण के लिये उन्हें प्रेरित न कर सके लेकिन हिन्दूवादी संगठन बजरंग बली की मूर्तियां एवं शिवलिंग स्थापित अल्पसंख्यकों पर हमला कर धर्मांतरण रोकना चाहते है।इस समय संघ का एक और प्रयास मामाजी को हिंदूवादी नेता साबित करने का चल रहा है। मामा जी ने रामायण भीली में लिखी थी।धर्मान्तरण को लेकर उनके द्वारा किये गए कार्यों का इस्तेमाल अब हिंदूवादी संगठन करने का प्रयास कर रहे हैं।
परन्तु वे मामाजी की तरह आदिवासियों को अंघविश्वासऔर नशे से बाहर निकालकर उनकी आर्थिक एवं शैक्षणिक उन्नति कर उन्हें अपने तरह से जीवन जीने देने को तैयार नहीं हैं। शिवराज सरकार द्वारा आदिवासियों को शराब बनाने का अधिकार देकर उन्हें नशे में ढकेलने की कोशिश की गई है ।जबकि आज भी मामाजी कोउ मानने वाले आदिवासी आज भी शराबबंदी का पालन करते हैं।मामाजी ने साहूकारों के आदिवासीयों पर चढ़े कर्ज माफ करवाए थे तथा जनता दल शासन काल में सरकार से किसानों की कर्जा माफी का फैसला अपने भील आश्रम में करवाया था।
मामाजी ऐसे गिने चुने आंदोलनकारी रहें, जिन्होंने औपचारिक आंदोलन न चलाकर बल्कि सतत् संघर्ष के माध्यम से पहले राजा फिर अंग्रेजों और बाद में अपनी सरकारों से आंदोलन की मांगे मंगवाने में सफलता हासिल की थी । जागीरदारी प्रथा को समाप्त करने के लिए उन्होंने आंदोलन किया। राजाओं, अंग्रेजों तथा अपनी ही सरकारों के जेल में कई महीनों तक रहे जब तक कि जागीरदारी प्रथा समाप्त नहीं हो गई है।
देश में ऐसे गिने चुने नेता है,जो मामाजी की तरह सादगी पूर्ण जीवन जीते है। जब 1960 में मद्रास सम्मेलन के सोशलिस्ट पार्टी के नेता डॉ. लोहिया और लोकनारायण जयप्रकाशनारायण मामा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव लेकर पहुंचे तब मामाजी ने कहा था, मैं धोती और खादी की बनियान पहनने वाला एवं पैदल चलने वाला हाथ में रोटी रखकर खाने वाला, बिना बिस्तर की खाट पर सोने वाला व्यक्ति हूं। मुझे अध्यक्ष बनाया तो लोग मजाक उड़ायेंगे और कहेंगे कि सोशलिस्ट पार्टी को कोई नहीं मिला तो एक जंगली पकड़ लाये। सोशलिस्टो ने तो लंबे समय तक मामा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर रखा। भला आज कोई राजनैतिक दल मामा जैसे व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने की कल्पना कर सकता है?
मामाजी ने राजनीति को प्रभावित किया था। 8 सांसद, 18 विधायक मामाजी ने आशीर्वाद से बने लेकिन मामाजी स्वयं संसदीय राजनीति के माध्यम से मंत्री, प्रधानमंत्री की दौड़ में कभी शामिल नहीं हुए।मामाजी को शायद मालूम था कि संसद के माध्यम से कोई बड़ी तब्दीली नहीं की जा सकती इसलिये राज्यसभा में भेजे जाने के बावजूद उन्होंने संसद के क्रिया कलापों में कोई रुचि नहीं दिखलाई थी। सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या समाजवादी मामाजी के सादगीपूर्ण, त्यागपूर्ण, संघर्षपूर्ण जीवन शैली को अपनाएंगे या जैसे देश में अनेक मठ चल रहे हैं ऐसा ही एक मठ मामाजी के नाम से भी चलाएंगे। मामाजी का भील आश्रम भावी पीढ़ी को प्रेरणा देने का श्रोत बना रहे तथा एक पाठ्यक्रम के माध्यम से मामाजी का जीवन चरित्र एवं कृतित्व से भावी पीढ़ी सीख ले सके। इसके लिये समाजवादियों से प्रभावशाली कदम उठाने की उम्मीद की जाती है ।
क्रांति कुमार वैद्य जी राजस्थान के मामाजी के अनुयायियों के साथ मिलकर हमने अब तक 8 किताबे प्रकाशित की हैं।इस बार भी मामाजी की 23 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर मामाजी के लंबे इंटरव्यू के साथ एक पुस्तिका प्रकाशित की जा रही है।
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