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"कृषिजीवी" सम्मान से समानित होंगे 50 कृषि कर्मयोगी

० योगेश भट्ट ० 

नई दिल्ली / परंपरागत जल संरक्षण और मेड़बंदी अभियान के सिलसिले में 22 दिसंबर को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में "जल संवाद" का आयोजन जलग्राम जखनी की ओर से किया  गया है । इस अवसर पर "परम्परागत जल संरक्षण : जखनी का मेड़बंदी अभियान" विषय के अंतर्गत विशिष्ट  व्यक्तियों व्याख्यान के साथ कृषि क्षेत्र से जुड़े लगभग 50 सक्रिय कर्मयोगियों को "कृषिजीवी" सम्मान से सम्मानित किया जाएगा । 

जल मंत्रालय, भारत सरकार ने तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत नीति आयोग ने इस परंपरागत जल संरक्षण विधि को उपयुक्त माना है। महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना के अंतर्गत देशभर की ग्राम पंचायतों को आदेश दिया है कि वर्षा जल रोकने के लिए प्राथमिकता पर मेड़बंदी के माध्यम से मजदूरों को रोजगार दिया जाए । इस मद में सर्वाधिक धनराशि भी ग्राम पंचायतों ने खर्च की है। इससे पूर्व 20 वर्षों में किसानों ने अपने श्रम,अपनी मेहनत, धन से लाखों एकड़ जमीन में मेडबंदी की है, अभी कर भी रहे हैं। मेड़बंदी के माध्यम से लगभग हर गांव में खासकर बुंदेलखंड में लगातार फसल बोने का एरिया प्रतिवर्ष बढ़ रहा है। सूखा प्रभावित किसी भी राज्य के किसी भी जिले के गांव के खेत में मेडबंदी देखी जा सकती है ।

बगैर प्रचार-प्रसार के बाँदा जिले में मेड़बंदी विधि 1,50,000 गांव तक पहुंच गई है । जिन गांव में कभी धान नहीं पैदा होता था उन गांव में बासमती धान पैदा हो रहा है। धान खरीद सेंटर बनाए गए हैं। धान बगैर मेड़बंदी के पानी के नहीं होता। केवल बांदा जिले में 20 लाख कुंतल से अधिक धान पैदा हुआ है। चित्रकूट जिले में, महोबा जिले में, दतिया जिले में,छतरपुर जिले में धान खरीद सेंटर बनाए गए हैं। 2014 से 2020 के बीच के समय की उपज की जानकारी खुद की जा सकती है। बुंदेलखंड के गांव में पुरखों की सबसे पुरानी भूजल संरक्षण विधि मेड़बंदी है। जिस खेत में जितना अधिक पानी होगा खेत उतना अधिक उपजाऊ होगा। भूजल स्तर बढ़ता है फसलों को जलभराव एवं आभाव के कारण होने वाले नुकसान से बचाता है।

जलग्राम जखनी मेड़बंदी अभियान के संयोजक उमाशंकर पांडेय, जल योद्धा का कहना है, "वर्षा बूंदे जहां गिरे वही रोकें"। भूदान यज्ञ आंदोलन के प्रणेता सर्वोदयी आचार्य विनोबा जी से हमें इस विधि की प्रेरणा मिली है। इस विधि से रुके जल से भूजल स्तर ही नहीं बढ़ता बल्कि लाखों खेत के जीव जंतुओं को पेड़-पौधों को पीने के लिए पानी मिलता है। खेत में नमी रहती है। खेत से फसल लेने के लिए पुरखों की सबसे प्राचीन जल संरक्षण की विधि है जो परंपरागत विधि के साथ सामुदायिक है, सुलभ है। बगैर नवीन तकनीकी मशीन, शिक्षण, प्रशिक्षण, के कोई भी किसान नौजवान मजदूर खुद अपनी मेहनत से अपने खेत में इस विधि से जल संरक्षण कर सकता है। बगैर किसी की अनुमति के "खेत में मेड़, मेड़ पर पेड़" इस विधि को अब भारत में जलग्राम जखनी की जल संरक्षण विधि के नाम से राज, समाज, सरकार जानती है।

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