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संविधान की मूल प्रति में भारतीय संस्कृति का चित्रण भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक-राज्यपाल

० आशा पटेल ० 

राज्यपाल ने महर्षि अरविन्द को राष्ट्र ऋषि बताते हुए कहा कि वे राष्ट्रीयता से ओतप्रोत महान व्यक्तित्व थे। उन्होंने राष्ट्रवाद को सच्चा धर्म मानते हुए अपने चिंतन और सृजन से समाज को नई दिशा दी। राज्यपाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति, कलाओं, इतिहास के साथ लोकतांत्रिक जीवन पद्धति का महर्षि अरविन्द ने अद्भुत विश्लेषण अपनी लेखनी में किया है।
जयपुर । राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि संविधान ने हमें मूल अधिकार दिए हैं तो कर्तव्य बोध भी दिया है। प्रत्येक नागरिक दोनों के बीच संतुलन रखकर राष्ट्रहित और नैतिक मूल्यों की सही मायने में पालना कर सकता है।
राज्यपाल श्री मिश्र शनिवार को जवाहर कला केन्द्र में श्रीअरविन्द सोसायटी द्वारा आयोजित ‘संविधान में कलाकृतियां - श्रीअरविन्द के आलोक में’ विषयक प्रदर्शनी के उद्घाटन से पूर्व समारोह में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देश के संविधान की मूल प्रति में भारतीय संस्कृति का चित्रण भारत की संस्कृति और सभ्यता को समझने का आधार है। उन्होंने कहा कि संविधान सभा के सदस्यों द्वारा भारत की भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक संदेश देने का प्रयास इसके जरिए किया गया है।

राज्यपाल मिश्र ने कहा कि भारतीय संविधान को वह देश का जीवंत दस्तावेज मानते हैं। ऐसा इसलिए कि इसमें भारतीय संस्कृति की उदात्त जीवनधारा को साक्षात् अनुभव किया जा सकता है। उन्होंने भारतीय संविधान के कलापक्ष पर प्रदर्शनी आयोजित करने की पहल की सराहना की। उन्होंने कहा कि संविधान की मूल प्रति में महान कलाकार नंदलाल बोस के नेतृत्व में बने इन चित्रों के माध्यम से संविधान की हमारी संस्कृति को जन-जन में पहुंचाया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान के स्व. कृपालसिंह सिंह शेखावत को भी इसमें योगदान रहा, जो पूरे प्रदेश के लिए गौरव की बात है।

राज्यपाल मिश्र ने संविधान की मूल प्रति की चर्चा करते हुए कहा कि इसके भाग दो में वेदमय भारतीय संस्कृति का चित्रण है और महर्षि अरविन्द के अनुसार भी हम जो कुछ हैं और जो कुछ बनने की चेष्टा करते हैं, उस सब के मूल में वेद हैं जो हमारे चिंतन, आचारनीति, सभ्यता और राष्ट्रीयता को थामे रखने वाला स्तम्भ हैं। उन्होंने कहा कि संविधान के भाग तीन में रामायण का अंकन है और महर्षि अरविन्द ने रामायण को आदर्श जीवन चरित्र के साथ उदात्त जीवन मूल्यों का सार बताया है। उन्होंने कहा कि संविधान की मूल प्रति पर उकेरी कलाकृतियों में हमारे देश के मनीषियों के चिंतन की छाप दिखाई देती है। उन्होंने सुझाव दिया कि संविधान से जुड़ी भारतीय कला-संस्कृति का अधिकाधिक प्रसार करने के लिए प्रयास किए जाएं।

राज्यपाल मिश्र ने कहा कि भारतीय संविधान और इससे जुड़े मूल तत्वों के प्रति सभी को जागरूक करने की दिशा में बतौर राज्यपाल वह निरंतर प्रयासरत रहे हैं। इसी क्रम में देश के इतिहास में पहली बार राजस्थान विधानसभा में अभिभाषण के आरम्भ में संविधान की उद्देश्यिका और मूल कर्तव्यों के वाचन की परम्परा शुरू की गई। प्रदेश के विश्वविद्यालयों में संविधान पार्क बनाने की पहल की गई और अधिकांश विश्वविद्यालयों में यह पार्क बनकर तैयार भी हो गए हैं।

राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति विनोद शंकर दवे ने कहा कि भारत का मूल संविधान 22 भागों में बांटा गया है। सभी भाग भारतीय सभ्यता के चित्रण से आरम्भ होते हैं, जो हमारे महापुरुषों और मनीषियों के ज्ञान को समेटे हुए हैं। पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता गुरुचरण सिंह गिल ने कहा कि संविधान में सांस्कृतिक चित्रण का मूल विचार संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का था। उन्होंने इन चित्रों के महत्व और संदेश को अपने संबोधन में रेखांकित किया। कार्यक्रम में श्रीअरविन्द सोसायटी के अध्यक्ष श्री आमोद कुमार, राजस्थान सचिव श्री सूर्यप्रताप सिंह राजावत ने भी विचार व्यक्त किए। राज्यपाल मिश्र ने कार्यक्रम के आरम्भ में संविधान की उद्देश्यिका एवं मूल कर्तव्यों का वाचन किया।इस अवसर पर राज्यपाल के प्रमुख विशेषाधिकारी गोविन्दराम जायसवाल, श्रीअरविन्द सोसायटी के पदाधिकारी एवं गणमान्यजन उपस्थित रहे।
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