नयी दिल्ली - दिल्ली-एनसीआर में दिन-प्रतिदिन आंखों को चुभने वाले धुंध बढ़ती ही जा रही है। जो स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हो रही है। ऐसे में बुढ़ा, बच्चा और जवानों को सांस लेने में बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली की एयर क्वालिटी (वायु गुणवत्ता सूचकांक-AQI) इतनी ज्यादा प्रभावित होती जा रही है कि लोगों के सांस लेना दूभर हो रहा है। सामान्यतः वायु गुणवत्ता सूचकांक (aqi) 100 या फिर इससे कम को आदर्श मानक के अंतर्गत रखा जाता है। जैसे जैसे यह मापदंड ऊपर बढ़ता है । उसी प्रकार एयर क्वालिटी खराब होती जाती है। आज के समय में दिल्ली का हाल यह है । कि यहां कि वायु गुणवत्ता 321 है। जो की खतरे के यायरे में है। ऐसे में लोगों को स्वास्थ्य से संबंधित बहुत सारी परेशानियों हो रही है। स्थिति इतनी खराब हो चुकी है। कि देश की सरकारें लॉक डाउन जैसे गंभीर फैसले लेने पर विचार विमर्श कर रही है।
प्रदूषण से बचने के लिए आयुर्वेद कैसे करता है आपकी मदद ?
आयुर्वेद के अनुसार पंचकर्म चिकित्सा (नस्य) एवं आयुर्वेदिक औषधियां शरीर को प्रदूषण के विरुद्ध ऐसे तैयार करती है । जिससे हमारे शरीर में प्रदूषण का कम से कम असर होता है। या फिर बिल्कुल भी नही हो। आयुर्वेदिक औषधियां हमारे शरीर के अधिक क्षारीय बनने में सहायक होती है। जिससे मौषम परिवर्तन होने पर बढ़े हुए अम्ल से शरीर की रक्षा आसानी से हो जाती है। आयुर्वेद के मत तहत, यदि आप अपने खानपान में इस प्रकार का संतुलन बनाते है । जिससे शरीर का स्तर क्षातीर बना रहे। तो यह आपके लिए बहुत ही मददगार होगा।
जैसे ही वातावरण में प्रदूषण बढ़ता है। तो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आने लगती है। ऐसे में आयुर्वेद में कुछ ऐसी औषधियां है। जो आपकी इम्युनिटी को बढ़ती है । जैसे आंवला, संतरा, एलोवेरा, हरिद्रखण्ड का दूध यह सब इम्यूनिटी बुस्टर है। जो आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखते है। इससे आपको रोगों से लड़ने में मदद मिलती है । और आप जल्दी बीमार नही पड़ते है। अपने घर में आप सुबह और शाम के सयम चंदन , गुग्गल , लोबान एवं सुंगंधित आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से मिश्रित सामग्री से हवन करके वायु की गुणवत्ता में सुधार कर सकते है। ऐसा प्रतिदिन करने से आपके आसपास की वायु शुद्ध होगी और प्रदूषण में कमी होगी।
अश्वगंधा चूर्ण, शतावर चूर्ण, गिलोय औषधि, यष्टि मधु का सेवन चिकित्सक के परामर्श पर करके आप अपनी इम्यूनिटी बढ़ा सकते है। योग विज्ञान में प्रदूपण से बचने के लिए जलनेति योग क्रिया का विधान है। इससे श्वसन तंत्र में चिपके हुए प्रदुषण कर पानी के साथ बाहर आ जाते है। यह क्रिया किसी अच्छे योग प्रशिक्षक या फिर आयुर्वेदिक पंचकर्म विशेषज्ञ की निगरानी में की करें। रात्रि के समय दूध में हल्के गुड के साथ खजूर, काली मिर्च का चूर्ण, सोंठ का चूर्ण और आवश्यकतानुसार पीपल चूर्ण मिलकार कुछ हफ्ते पीयें। रात्रि में विश्राम करने से पूर्व नाक और नाभि में सरसों के तेल की दो बूंंदे भी डाले इससे प्रदूषण कण शरीर के बाहर आ जाते है।
पंचकर्मा की नस्य थेरेपी वायु प्रदूषण के प्रभाव को कैसे रोकती है ?
नस्य कर्म आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा के अंतर्गत आने वाली एक विशेष चिकित्सा पद्धति है। इसमे तरल औषधियों का प्रवेश मरीज की नाक से माध्यम से किया जाता है। नस्य थेरेपी की सहायता से मरीज की नाक एवं गले से समस्त रोगों से छुटकारा मिल जाता है। यह थेरेपी प्रदूषण की समस्या एवं प्रदूषण के कारण जो रोग उत्पन्न होते है। उनको ठीक करने में सर्वोत्म चिकित्सा मानी जाती है।
नस्य कर्म से श्वसन तंत्र मजबूत रहता है। और इसके करने से कभी भी नाक से संबंधित रोग नही होते है। यह कर्म प्रदूषण दूर करने के लिए श्वसन संंबंधी परेशानियों के लिए सबसे ज्यादा हितकर माना जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा की विशेषता यही है। कि रोग की प्रकति के अनुरुप ही औषधियों का सेवन कराया जाता है। इसलिए आयर्वेद में रोगी की प्रकति एवं रोग की प्रकति तय होने के बाद ही औषधियों का निर्धारण किया जाता है। यही आयुर्वेद चिकित्सा के सफल होने का मुख्य कारण है। यह खास जानकारी आशा आयुर्वेदा की आयुर्वेदिक विशेषज्ञ डॉ चंचल शर्मा से “दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण के विरुद्ध आयुर्वेदिक परामर्श” की चर्चा के दौरान प्राप्त हुआ।
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