ताऊ - क्या बताऊँ खबरी लाल ' । तुम्हे तो सब कुछ मालुम ही है। पिछले वर्ष आये हुए कोरोना संकट काल के दंश से प्रभाव अभी भी है। खबरी लाल - हाँ ताऊ यह तो सही है । वैश्विक महामारी कोरोना के कारण देश की अर्थ व्यवस्था चरमरा गई है। परिणाम स्वरूप आज भी देश आथिक तंगी से लड रहा है। ऐसे मे सभी की जेव खाली है। फिर भी हमारा देश पर्व त्योहारो का देश है। दिवाली व अन्य तीज त्योहार मना ही पडेगा ।ताऊ - खबरी लाल आज तुम्हे हम भारतीय इतिहास व संस्कृति व सभ्यता के वारे मे बताता हुँ। खबरी लाल - हाँ ताऊ यह तो बहुत ही अच्छी बात है। मुझे भी इस संदर्भ मे जानने की जिज्ञासा है।
ताऊ - खबरी लाल ध्यान से सुनो ' हमारी संस्कृति व सभ्यता अति प्राचीन है। लेकिन दुःख की बात यह है कि हमारी इतिहास धीरे धीरे बदली जा रही है इन्ही श्रंख्लाओ मे गायब होती एक लोक कथाओं है। दिवाली से सम्बन्धित है जो इस प्रकार है । एक मूसेसाव की कहानी तब शुरू होती है जब एक जाना माना व्यापारी नगर के अन्य व्यापारियों से धन आदि लेकर समुद्री रास्ते से व्यापार के लिए निकलता है। समुद्र में भयावह तूफ़ान आता है और व्यापारी जिस जहाज पर था वो डूब जाता है। उसके जहाज के डूबने की खबर आने पर नगर के अन्य व्यवसायी अपना माल भी डूबा मान लेते हैं और जो रकम बिक्री से पहले ले ली थी उसी पर संतोष कर लेते हैं। उधर जिस व्यापारी की मृत्यु हुई ।उसपर तो संकटों का बादल टूट पड़ता है।
काफी रकम खर्च करके उन्होंने व्यापार में निवेश किया था। वापस ना आने पर जमा पूँजी भी सब डूब गई थी।ऐसे में उसकी पत्नी और बेटा कंगाली की सी स्थिति में आ गए। हारकर एक दिन बेटे ने कहा कि जिन व्यापारियों से पिताजी कर्ज लिया करते थे उनसे ही मैं भी कुछ रकम मांगकर व्यापार शुरू करने की कोशिश करता हूँ। कम से कम जीविका चले। माँ से इजाजत लेकर लड़का पहले एक फिर दुसरे करते सभी के पास गया। लेकिन रकम डूबने से खिन्न उसके पिता के भूतपूर्व मित्रों ने भी उसकी मदद नहीं की। एक व्यापारी के पास जब वो गया तो उसके अनाज का नुकसान हो रहा था इसलिए वो अपनी दुकान में एक चूहे को मारने में जुटा था।
लड़के ने व्यापारी की मदद के लिए चूहे को मार दिया, मगर जब काम होने के बाद धन की बात की तो उसने लड़के की खिल्ली उड़ाते कहा कि अगर दम होता तो वो उस मरे चूहे से ही कमा लेता, ऐसे भीख ना मांगता फिरता। निराश लड़का अब मरे चूहे को लेकर नगर श्रेष्ठी से सलाह करने चला। वहां नगर श्रेष्ठी की पालतू बिल्ली चूहे को देखकर मचल गई। श्रेष्ठी ने चूहा माँगा तो लड़का फ़ौरन बोला, मैं तो इसे बेचने ही निकला हूँ ! मरे चूहे के बदले श्रेष्ठी ने आधे घड़े भर चना लड़के को दे दिया।चने को पानी में फुलाकर लड़का अगले दिन पास के वन में जा बैठा, जहाँ कुछ राजा के मजदूर, राजमहल के काम के लिए लकड़ियाँ काट रहे होते थे। उनसे चने-पानी के बदले उसने लकड़ियाँ लेनी शुरू की। थोड़े ही समय में उसके पास काफी लकड़ियाँ इकठ्ठा हो गयीं। उनमें से कुछ बेचकर वो रोज चने ही ले लेता और धीरे धीरे चने से आगे सत्तू फिर और अनाज का व्यापार भी शुरू कर दिया। कुछ साल बीतते बीतते जब तक राजमहल बना, लड़का भी अनाज का बड़ा व्यापारी हो चुका था। राजदरबार से भी अनाज की खरीद बिक्री का काम उसे मिलने लगा।
एक रोज जब अनाज के काम के ही सिलसिले में कई साल पहले का मरा चूहा देने वाला व्यापारी उसके पास आया तो लड़का पूछ बैठा, पहचाना मुझे ? मैं वही चूहे वाला लड़का। चूहे को मूस भी कहते हैं, इसलिए ये व्यापारी मूसेसाव नाम से ही विख्यात हुआ। भारत के त्यौहार जो कृषि-वाणिज्य जैसे कर्मों से जुड़े होते हैं उनकी परंपरा भी देखें तो आपको ऐसी ही छोटी छोटी चीज़ों पर ध्यान देना, नजर आ जाएगा।
दीपावली का त्यौहार जिस दिन मनाया जाता है, उसे से दो दिन पहले और दो दिन बाद तक कोई ना कोई आयोजन चल रहे होते हैं। इनकी शुरुआत धन्वन्तरि की उपासना यानी धनतेरस से शुरू हो जाती है। अगर आप स्वस्थ नहीं हैं, तो कोई सुख लेने में समर्थ ही नहीं होंगे। मिठाई जैसी चीज़ें खरीदने के पैसे होने का क्या फायदा जब आप डाईबिटिज जैसी बीमारियों की वजह से उसे खा ही ना सकें ? आयुर्वेद चुंकि बीमारी के बाद की ही रोकथाम पर नहीं, बल्कि पहले से उसके बचाव का प्रबंध रखने में विश्वास रखता है इसलिए धन धन्य से जुड़ा ये पर्व उनसे ही शुरू होता है। क्रम में दुसरे स्थान पर नरक निवारण चतुर्दशी है जिसे दो रूपों में देख सकते हैं। एक तो “नरक मचाना” गंदगी फैलाने को कहा जाता है। स्वच्छता के बिना ना स्वास्थ्य होगा, ना वैभव, इसलिए ये स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने का दिन भी है। इस दिन जो नरकासुर मारा गया था, ये वही था जिसने कई हजार कन्याओं का हरण कर रखा था और उन्हें छुड़ा कर श्री कृष्ण वापस ले आये थे। किन्हीं कारणों से जो लक्ष्मी बाहर चली गई हैं, उसे वापस लाने के प्रयासों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, ये भी इस दिन याद कर सकते हैं।
दीपावली तीसरी होती है, जिस दिन हिन्दुओं में नए बही खाते, और कई नए प्रयासों को शुरू करने का दिन माना जाता है। आयातित अंधविश्वासों के जो हाले लुइया पोषक ये सिखाते हैं कि अमावास की रात भयावह या अशुभ होती है, इस दिन उन्हें ये जरूर याद दिलाइये कि ऐसी मूर्खताएं हिन्दुओं में नहीं चलती। दीपावली अमावस्या को ही शुरू होती है, और हम लोग ना तो आयातित विचारधाराओं की तरह किसी को वाणिज्य-व्यवसाय जैसे कर्मों के कारण अपना शत्रु मानते हैं, ना अमावस्या पर कोई काम शुरू करने से बेवजह परहेज रखते हैं।पशु-पक्षी और पर्यावरण में मनुष्यों के योगदान जैसी चीज़ों के लिए भी हिन्दुओं के त्योहारों की महत्ता होती है। दीपावली के अगले दिन होने वाली गोवर्धन पूजा, घर के पालतू पशुओं के लिए होती है।
कभी छल और कभी बल से परम्पराओं को गायब करने और अर्थोपार्जन के तरीकों से रोकने के प्रयास जारी रहे हैं। ऐसे त्यौहार में जब आपके लिए गोवर्धन पूजा पर कोई बसहा बरद, कोई गाय ना हो, तो हमलावरों का शोषण भी याद रखिये।ये त्यौहार भाई दूज पर समाप्त होता है जब भाई अपनी बहनों से मिलने उनके घर जाते थे। अकेले मनाई जाने वाली खुशियाँ अधूरी सी होती हैं। अपने ससुराल पक्ष से, सिर्फ रक्त सम्बन्धी ही नहीं, शादी के जरिये बने संबंधों को ये याद रखना और जोड़ना याद रखना ही चाहिए। वैसे तो पत्नी के भाई से जुड़ी कुछ कहावतें भी हमने सुनी हैं, इसलिए इसे कोई भूलता होगा, ऐसा तो हमें बिलकुल नहीं लगता। बाकी चार दिन का जिक्र किया है इसलिए इसका नाम लिख देने की खानापूर्ति करनी पड़भाई दूज के ही दिन बिहार के कई इलाकों में चित्रगुप्त पूजा भी होती है। ये सभी जगह मनाया जाता है या नहीं ये नहीं पता। कलम-दवात की पूजा और यमराज के पास लेखा जोखा रखने वाले चित्रगुप्त की पूजा इस दिन शायद कायस्थ बिरादरी के लोग हर जगह ही करते होंगे।
आपके काम करने के औजार (चाहे वो कलम ही क्यों ना हो) भी महत्वपूर्ण होते हैं, इसे भी त्योहारों के जरिये याद दिला दिया जाता है। कोई सभ्यता-संस्कृति जितनी पुरानी होगी उसमें एक प्रतीक के जरिये सौ बातें कहने का गुण भी उतना ही बढ़ता जाता है। हमारे त्यौहार प्रतीक हैं, उनके पीछे के महत्व, त्यौहार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।धन्वन्तरि इतिहास-धन-त्रयोदशी को धन्वन्तरि-जयन्ती भी कहा है। इतिहास में कई धन्वन्तरि हुये हैं, जिनमें कलियुग के पूर्व थे। धनु चाप के आकार का होता है जिससे बाण छोड़ते हैं। इसी प्रकार के यन्त्र द्वारा शरीर से शल्य चिकित्सक को धन्वन्तरि कहा गया है। शल्य चिकित्सा तथा आयुर्वेद कई विद्याओं का समन्वय है अतः चिकित्सक को वैद्य (विद्या युक्त) कहते हैं। आज भी डाक्टर का अर्थ चिकित्सक या शोध करने वाला भी होता है।
(१) समुद्र-मन्थन के समय-राजा बलि ने इन्द्र के ३ लोको .जिसमें प्रजा से कर वसूल कर उसका पुनः लोकहित में प्रयोग होता है, जैसे मेघ समुद्र से जल लेकर उसे पुनः लोगों के लिये वर्षा करते हैं-
देवों का यज्ञ भाग असुरों को जा रहा था जैसा पराधीनता में होता है। वामन अवतार विष्णु ने जब ३ पद भूमि मांगी तो बलि ने तुच्छ जानकर दे दिया। यहां विष्णु का १ पद विषुव से कर्क रेखा तक की गति है। उत्तरी ध्रुव तक इस पद से २ ही पद पूर्ण होते हैं। तीसरा पद ध्रुव-वृत्त में आयेगा, जो बलि का सिर (उनकी अधिकृत भूमि का उत्तरतम भाग) कहा गया है। देव उतने निर्बल नहीं थे। युद्ध से बचने के लिये बलि ने इन्द्र का राज्य वापस कर दिया। पर कई असुर सन्तुष्ट नहीं थे और युद्ध चलते रहे। कूर्म अवतार विष्णु ने समझाया कि युद्ध द्वारा दूसरे देशों पर कब्जा करने से की लाभ नहीं है। यदि उत्पादन नहीं बढ़ेगा तो किस सम्पत्ति पर अधिकार होगा?
उनकी सलाह मान कर असुरों ने देवों के साथ खनिज निकालने में सहयोग किया। असुर खनिज निकालने में दक्ष थे अतः उन्होंने खान के भीतर काम किया जो वासुकी नाग का गर्म मुंह कहा गया है। वर्तमान मे यह मुख्यतः झारखण्ड के दुमका जिले के बासुकी नाथ तीर्थ स्थल है से कुछ किलो मीटर दूर मन्दार पर्वत (वॉका जिले ) इन्द्र पुनः खनिज सम्पत्ति के वितरण को लेकर युद्ध हुये तब कार्त्तिकेय ने असुरों को पराजित कर क्रौञ्च द्वीप (उत्तर अमेरिका) पर अधिकार किया। इसी समुद्र मन्थन के १४ रत्नों में एक अमृत है जिसका कलश लेकर धन्वन्तरि निकले थे।खबरी लाल -किन शब्दो में आप का धन्यवाद करूँ मै पास शब्द नही है आप सभी यह कहते हुएना काहू से दोस्ती ' ना काहुँ से बैर खबरी लाल मांगे सबकी खैर।विदा लेते है फिर आप के समक्ष तीखी नजर से तीखी खबर के संग उपस्थित होगे ।
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