कविता // सीमा का प्रहरी
सीमा पर लड़ने वाला
हर प्रहरी जवान
भारत माता का सपूत होता
और उसके प्राण
देश की धरोहर
देश पर मर-मिटना
उसका दायित्व
वास्तव में वह दाता है--
अमनो-चैन का
सुक़ून का,स्वतंत्रता का
परंतु उसके शहीद होने पर
क्या हम दे पाते हैं प्रतिदान
उसकी शहादत का
क्या हम व्यवस्था कर पाते हैं
उसके परिवार व बच्चों के लिये
सुरक्षित भविष्य की
और मूलभूत आवश्यकताओं की
पूर्ति के निमित्त पेंशन की
जिससे मिल सके उन्हें सम्मान-पूर्वक
जीवन बसर करने का ह़क
हमारे नुमाइंदे कब समझते हैं
उस गरीब सैनिक
व उसके परिवारजनों पर
टूटते दु:खों के पहाड़ का दर्द
उसकी विधवा पत्नी की
सूनी मांग व कलाइयां देख
उनके भीतर का लावा क्यों फूट नहीं जाता
विरहाग्नि की टीस,कसक
वेदना में तिल-तिल कर जलती-मरती
वह अभागिन अपने कंधों पर
बच्चों व माता-पिता का बोझ लादे
आजीवन मनचलों की वासना भरी
निगाहों का सामना करती
अपनी अस्मत को बचाती
पग-पग पर समझौता करती
हर-पल शून्य नेत्रों से निहारती
कर्त्तव्य-भाव के नीचे दबी रहती
काश!हमारे देश के कर्णाधार
समझ पाते उस विधवा की
आंखों से बहते अजस्त्र आंसुओं का दर्द
माता-पिता की इकलौती संतान के
खो जाने की हृदय-विदारक चीत्कार
अनुभव कर पाते
तो वे चंद सिक्कों के लिये
अपने देश की अस्मत का
सौदा कभी नहीं करते
★★★
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