0 सुषमा भंडारी 0
ये साँसों की खान हैं जीवन का वरदान।
प्राण सींचते वृक्ष ही मान तू या न मान ।।
जंगल में मंगल करें वृक्ष बडे अनमोल
शुद्ध हवा इनसे मिले मत कर इनका मोल।।
मन हर्षित हो जाय है जब जब देखूं पेड़ ।
हरी भरी वसुंधरा इसको न तू छेड़। ।
अपने जीवन के लिये एक लगा तू पौध।
यही तुम्हारी खोज है यही तुम्हारा शोध।।
खुशियां अपरम्पार हों जग का हो विस्तार।
जीवन देते वृक्ष जब मृत्यु जाये हार।।
आज लगाई पौध ये देगी जीवन लाभ।
स्वास्थ्य लाभ के वास्ते आओ बोयें ख्वाब।।
जल संरक्षण भी करें, जल की मारम्मार।
दुरुपयोग न कर कभी न हो तू लाचार।।
वन्य जीव जलने लगे वृक्षों की क्या बात।
स्वार्थ- सिद्धि के लिये मानव दे आघात।।
नित्य करें सब योग हम जीवन सफल बनाय ।
रोग दूर तन स्वस्थ हो मन सुन्दर हो जाय।।
गीत-------
आज पुलकित वादियाँ हैं,लचकी टहनी झूम के बूंँद बादल से गिरी पर, आई पत्ते चूम के
वृक्ष बौराया खड़ा है ,सौन्धी खुशबु दे धरा___
आज पुलकित----------
पुष्प की चादर से लिपटे देखो सुंदर बाग हैं
गा रहे मधुमास भ्रमर मुँह पे उनके राग हैं
डोलें नन्ही कलियाँ इत-उत, सोंधी खुशबु दे धरा____
आज पुलकित----------
है चमन में आज खुशियाँ क्या कहूँ
स्वर्ण मोती सी ये लड़ियाँ मैं बहूँ
है नई फसलों का मेला, सोंधी खुशबु दे
धरा____
आज पुलकित-----------
आज नभ में उड़ रहे ये खग बहुत मदहोश हैं
झूम कर बरसे हैं बदरा जैसे कि बेहोश हैं
हो गया कण- कण सुनहरी, सोंधी खुशबु दे
धरा____
आज पुलकित-------------
लहरें सबअठखेलियाँ कर बह रही नव राह पर
सब समन्दर से मिलेंगी सिर्फ उसकी चाह पर
ताल, पोखर, नदियाँ मिल गये सोंधी खुशबु दे
धरा____
आज पुलकित------
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