Halloween Costume ideas 2015

कविता // अनुत्तरित प्रश्न


डॉ०मुक्ता ० 

कांधे पर बैग लटकाए

बच्चों को स्कूल की

बस में सवार हो

माता-पिता को

बॉय-बॉय करते देख

मज़दूरिन का बेटा

उसे कटघरे में खड़ा कर देता

‘तू मुझे स्कूल क्यों नहीं भेजती?’

क्यों भोर होते हाथ में

कटोरा थमा भेज देती है

अनजान राहों पर

जहां लोग मुझे दुत्कारते

प्रताड़ित और तिरस्कृत करते

विचित्र-सी दृष्टि से

निहारते व बुद्बुदाते

जाने क्यों पैदा करके

छोड़ देते हैं

सड़कों पर भीख

मांगने के निमित

इन मवालियों को

यह अनुगूंज हरदम

मेरे अंतर्मन को सालती

मां!भगवान ने

सबको एक-सा बनाया

फिर यह भेदभाव

कहां से आया?

कोई महलों में रहता 

कोई आकाश की

खुली छत के नीचे

ज़िन्दगी ढोता

किसी को सब

सुख-सुविधाएं उपलब्ध

तो कोई दो जून की

रोटी के लिए

भटकता निशि-बासर

और दर-ब-दर की

ठोकरें खाता हर पल

बेटा!यह हमारे

पूर्व-जन्मों के

कर्मों का फल है

और नियति है हमारी

हमारे भाग्य में विधाता ने

यही सब लिखा है

सच-सच बतला,मां!

किसने हमारी ज़िन्दगी में

ज़हर घोला

अमीर गरीब की खाई को

इतना विकराल बना डाला

 बेटा!स्वयं पर नियंत्रण रख

 सत्ताधीशों के सम्मुख

नगण्य है हमारा अस्तित्व

और हम उनकी

करुणा-कृपा पर आश्रित

यदि हमने सर उठाया

तो वे मसल देंगे हमें

कीट-पतंगों की मानिंद

और किसी को खबर भी न होगी

परन्तु वह अबोध बालक

इस तथ्य को न समझा

न ही स्वीकार कर पाया

उसने समाज में क्रांति की

अलख जगाने का मन बनाया

ताकि टूट जायें

ऊंच-नीच की दीवारें

भस्म हो जाए

विषमता का साम्राज्य

और मिल पायें

सबको समानाधिकार

बरसें खुशियां अपरम्पार

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