कंस्ट्रक्शन एवं डेमोलिशन अपशिष्ट प्रबंधन में अपार संभावनाएं- वीनू गुप्ता
जयपुर। पीएचडी चैम्बर राजस्थान चैप्टर द्वारा कंस्ट्रक्शन एवं डेमोलिशन अपशिष्ट प्रबंधन नियम के महत्वपूर्ण विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी इन नियमों के विभिन्न प्रावधानों एवं नियमों के क्रियान्वयन के बारे में विस्तृत चर्चा की गई।
संजय अग्रवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष, पीएचडी चैम्बर ने अपने अध्यक्षीय भाषण में इन नियमों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए जोर दिया की जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत में इस प्रकार के कचरे का उत्पादन दिन-ब-दिन बढ़ रहा है और प्रति वर्ष 530 मिलियन टन कचरे का अनुमान है और अधिकांश निर्माण उद्योग इस महत्वपूर्ण कचरे की वैज्ञानिक रीसाइक्लिंग तकनीकों से अवगत नहीं है। इस प्रकार के कचरे का पुनर्नवीनीकरण करके आर्थिक मूल्य और व्यापार के बड़े अवसर पैदा कर सकते हैं। उन्होंने बताया की इस तरह की तकनीक प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरण और प्रदूषण से संबंधित मुद्दों को कम करने में सहायक सिद्ध होगी जो की आवास और सड़क क्षेत्रों में मांग आपूर्ति अंतर को काफी कम कर देगा। इससे सर्कुलर इकोनॉमी को भी बढ़ावा मिलेगा जो समय की मांग है।
दिग्विजय ढाबरिया, अध्यक्ष, पीएचडी चैम्बर -राजस्थान चैप्टर ने बताया की कंस्ट्रक्शन एवं डेमोलिशन अपशिष्ट कचरे को वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधित करने की आवश्यकता है ताकि विभिन्न प्रकार की प्रदुषण एवं अन्य समस्याओं से नगरीय निकायों को बचाया जा सके एवं स्वच्छता सुनिश्चित की जा सके, जिसका सामना कई नगर निकाय करते हैं। श्री ढाबरिया ने बताया की सी एंड डी कचरे में उपयुक्त तकनीकों का उपयोग करके आर्थिक अवसर पैदा किये जा सकते है जिसमे रीसाइक्लिंग के माध्यम इसका उपयोग निर्माण उद्योग में कच्चे माल के रूप में जा सकता है।
वेबिनार की मुख्य अध्यक्ष वीनू गुप्ता, आईएएस, चेयरपर्सन, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कंस्ट्रक्शन एवं डेमोलिशन अपशिष्ट के वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण आवश्यकता पर बल देते हुए कहा की अभी भारत में इस तरह के कुल अपशिष्टका मात्र 1% ही पुनःचक्रित हो रहा है जो की विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम है तथा उन्होंने भागीदारों से इसे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बताया की इस अपशिष्ट के पुनर्चक्रण से अपार व्यवसाईक सम्भावनाये एवं अवसर सृजित होंगे तथा प्रदूषण में कमी के साथ प्राकृतिक संसाधनों के निर्माण क्षेत्र में भारी दबाव को कम किया जा सकेगा तथा स्वच्छ भारत अभियान में यह एक मील का पत्थर साभित होगा। वर्तमान में राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में श्रीमती गुप्ता ने बताया की मात्र 12% स्थानीय निकायों ने इस अपशिष्ट के लिए भूमि चिन्हित की है। उन्होंने आशा प्रकट की कि और निकाय भी भूमि का आवंटन करेंगे तथा कंस्ट्रक्शन एवं डेमोलिशन अपशिष्ट को पुनःचक्रित करने हेतु सुविधायें विकसित करेंगे। उन्होंने विश्वास दिलाया की मंडल इस तरह के अपशिष्ट के निस्तारण हेतु प्रयासों मेंउत्प्रेरक की भूमिका निभाएगा ताकि राज्य में कंस्ट्रक्शन एवं डेमोलिशन अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016 के क्रियान्वयन को सुनिश्चित किया जा सके।
वेबिनार में बोलते हुए अन्य प्रख्यात वक्ताओं ने इस क्षेत्र में प्रचलित शोध मौजूदा तकनीक एवं अवसरों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने मांग की कि इस क्षेत्र प्रोत्साहित करने हेतु सरकार एक विशेष पैकेज की घोषणा करे।
वेबिनार में डॉ. भारत भूषण नागर, सदस्य, एमओएचयूए राष्ट्रीय सूखा अपशिष्ट परिपत्र उप-समिति, भारत सरकार, आर के बागरोडिया, चेयरमैन, एंजाइम इंफ़्रा प्राइवेट लिमिटेड, डॉ. राकेश कुमार, सीनियर प्रिंसिपल साइंटिस्ट, सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टिट्यूट, संजय सिंह, उपाध्यक्ष, सीडीई-एशिया, सुनील जैन, अध्यक्ष, क्रेडाई-राजस्थान, अनिल कपूर, अध्यक्ष, एमईएस बिल्डर्स ऐसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये।, सुनील दत्त गोयल, उपाध्यक्ष, पीएचडी चैम्बर -राजस्थान चैप्टर ने सभी का धन्यवाद प्रस्तुत किया।
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