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आयुर्वेद और एलोपैथी में कौन है बेहतर


० नूरुद्दीन अंसारी ० 

भारत में आधुनिक चिकित्सा यानी एलोपैथी का इस्तेमाल 16वीं सदी में शुरू हुआ था। उस समय डॉक्टर नहीं थे। बल्कि आचार्य, वैद्य, और ऋषि   लोगों का इलाज करते थे और इलाज के तरीके भी काफी अलग थे। आयुर्वेद, उपचार के प्राचीन तरीकों में से एक, 3 से चार हजार साल पुराना माना जाता है। यह संस्कृत भाषा के अयूर और वेद के दो शब्दों से मिलकर बना है।

 आयुर का अर्थ है जीवन और वेद का अर्थ है विज्ञान। यानी आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का विज्ञान। आज देश भर में कुल 69 हजार सरकारी और निजी अस्पताल हैं, जबकि आयुष अस्पतालों की संख्या सिर्फ 3600 है। इनमें 2 हजार 827 आयुर्वेदिक अस्पताल, 252 यूनानी अस्पताल, सिद्ध चिकित्सा पद्धति के 264 अस्पताल और होम्योपैथी के 216 अस्पताल शामिल हैं। वहीं योग और आयुर्वेदिक उपचार ने भी लोगों को स्वस्थ जीवन शैली के बारे में सिखाया है। COVID-19 महामारी के बीच, चल रहे चिकित्सा उपचार के दो तरीकों - आयुर्वेद और एलोपैथी पर एक नई बहस शुरू हो गई है। सवाल यह है कि दोनों में से कौन सी तकनीक अधिक प्रभावी है। आशा आयुर्वेदा की निःसंतानता विशेषज्ञ ने दोनो चिकित्सा प्रणालियों, उनके इतिहास और उनकी प्रभावशीलता पर सदियों पुराने संघर्ष के बारे में बताया।

आयुर्वेद प्राकृतिक विज्ञान पर आधारित है और इसलिए सभी आयुर्वेदिक उपचार प्रकृति के करीब हैं। यानी आयुर्वेदिक दवाएं प्राकृतिक जड़ी-बूटियों, अर्क और पौधों का उपयोग करती हैं। एलोपैथी पर आयुर्वेद के लाभों में से एक यह है कि जिन जड़ी-बूटियों और पौधों का उपयोग किया जाता है, उनके दुष्प्रभाव नहीं होते हैं जो एलोपैथिक में होते हैं।

आयुर्वेद समस्या होने पर समाधान प्रदान करने तक ही सीमित नहीं है। आयुर्वेद इष्टतम स्वास्थ्य के लिए उपचार प्रदान करता है, ताकि आपको स्वास्थय समस्याओं का सामना न करना पड़े। आयुर्वेद इस सिद्धांत पर आधारित है कि रोकथाम इलाज से बेहतर है। यह एलोपैथिक दवा के विपरीत है जो लक्षणों को कम करने और उनका इलाज करने पर केंद्रित है। यह वह जगह है जहां आयुर्वेद एक स्पष्ट विजेता है क्योंकि आयुर्वेद  का मूल ध्यान केंद्रित करता है जिससे स्वास्थ्य समस्या हुई है और फिर उसके अनुसार उपचार प्रदान करता है।

आयुर्वेद एक समग्र उपचार दृष्टिकोण प्रदान करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि एलोपैथी के मामले में केवल लक्षणों को लक्षित करने के बजाय समस्या को जड़ से हटा दिया जाए। आयुर्वेद पूरी तरह से अलग दृष्टिकोण अपनाता है और किसी भी असंतुलन की जांच के लिए आपके दोषों को देखता है। जब आपका शरीर संतुलन से बाहर होगा, तो बीमारियां होंगी। असंतुलन के आधार पर स्वास्थ्य की स्थिति छोटी या बड़ी हो सकती है। एलोपैथिक दवा की तुलना में आयुर्वेद सटीक निदान और सस्ता निदान देता है।

आयुर्वेद के सापेक्ष में मैं आशा आयुर्वेदा निःसंतानता केन्द्र का उदाहरण प्रस्तुत करते है जोकि निःसंतान जोड़ों को संतान सुख दिलाने में मदद करता है। यहां पर यदि आयुर्वेदिक चिकित्सा और आईवीएफ के बीच तुलना करें तो दोनों की सफलता दर में जमीन  आसमान का अंतर दिखाई देता है। आंकडों के आधार पर पता चलता है कि एलोपैथिक चिकित्सा आईवीएफ की सफलता दर 20 से 25 प्रतिशत तक ही संभव है जबकि इसकी तुलना में आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा की सफलता दर 90 प्रतिशत से भी ऊपर है।  खर्च की बात करें तो आईवीएफ में करीब 3 लाख से ऊपर की लागत लग जाती है जबकि आयुर्वेदिक उपचार में रोगी की स्थिति के आधार पर कम समय एवं कम लागत में संतान सुख की प्राप्ति हो जाती है। 

आयुर्वेदिक औषधि इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) को बढ़ाते हुए आपके वायुमार्ग को साफ करने में मदद करती हैं ताकि आपको संक्रमण न हो इससे तो आप कोरोना काल में भालिभांति परिचित ही हो गये है। आयुर्वेदिक सूत्रीकरण सुनिश्चित करता है कि यह आपके शरीर को आराम देता है और ठीक करता है। यह आपको तीव्र खांसी, पुरानी खांसी, सर्दी से प्रभावी रूप से राहत देताहै और सूजन को कम करता है। आयुर्वेदिक अवयव सुनिश्चित करते हैं कि आपको जल्दी राहत मिले और प्राकृतिक आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों की मदद से आपका शरीर अपने प्राकृतिक संतुलन में वापस आ जाए। एलोपैथिक से आयुर्वेदिक दवा में स्विच करने से पहले या यदि आप इस दवा को आजमाना चाहते हैं, तो आपको किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से बात करनी चाहिए।

अंत में डॉ चंचल शर्मा कहती है कि आयुर्वेद एक सक्रिय जीवन शैली, एक तनाव मुक्त दिमाग, अच्छी नींद, नियमित भोजन, ताजा और स्वस्थ भोजन अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। दोनो चिकित्सा पद्धति एलोपैथी और आयुर्वेद की तुलना करने के परिणाम स्वास्थ्य हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि एलोपैथी चिकित्सा के के अतिरिक्त आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को भी प्रोत्साहन अवश्य देना चाहिए। आयुर्वेद चिकित्सा हमारे देश की सबसे प्राचीन चिकित्सा है। वर्तमान समय में इस चिकित्सा पद्धति को मुख्यधारा में लाकर लोगों का स्वास्थ्य सुनिश्चित करना होगा। आचार्य चरक के अनुसार आयुर्वेदिक चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना है।

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