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कोरोना काल में मानवीय मूल्यों के संकट के दौरान सरकार हर मोर्चे पर विफल

० आशा पटेल ० 

रीवा  .कोरोना ने समूचे विश्व को झकझोर रखा है . कोई भी ऐसा क्षेत्र अछूता नहीं , जो इससे प्रभावित न हुआ हो . लेकिन ऐसे समय यह देखने को मिला है कि पूरे विश्व में पूंजीपतियों की ताकत एवं सरकार की मनमानी बढ़ी है . कोरोना काल में मानवीय मूल्यों के संकट के दौरान सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है . खासतौर से भारत में सरकार और समाज का प्रबंधन बुरी तरह प्रभावित हुआ है . 

यह भारी विडंबना है कि ऐसे समय आपदा को अवसर में बदलते हुए देखा जा रहा है . प्राध्‍यापक सुनीता त्यागी (बिजनौर) उत्तर प्रदेश , प्राध्यापक चंद्र शीला गुप्ता (मंदसौर) मध्य प्रदेश , सामाजिक कार्यकर्ता विभा जैन (जयपुर) राजस्थान , अजय खरे , सुशीला मिश्रा (रीवा) लीला पंवार (इंदौर) एवं शकुंतला सिंह शहडोल , मध्य प्रदेश ने कॉल कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोरोना काल के सामाजिक परिवेश में जीवन मूल्यों का गहराता संकट और चुनौतियां  विषय पर विचारोत्तेजक चर्चा की .

नारी चेतना मंच के तत्वावधान में आयोजित परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि 1 साल से भी अधिक समय से कोरोना महामारी से पूरी दुनियां जूझ रही है . जीवन मूल्यों का संकट गहराता जा रहा है . ऐसे महा संकट के समय लोगों के बीच मानसिक अलगाव भी बढ़ा है . भारत जैसे विकासशील देश में आपदा का गलत फायदा उठाने की कुछ लोगों की सोच ने संकट को और गहरा कर दिया है . महामारी में लोग एक दूसरे के लिए किस तरह काम आएं , यह बात बहुत कम देखने को मिल रही है . ऐसे संकट के समय भी बहुत लोगों का लालच बना हुआ है .

 
आपदा को अवसर बनाने की ओछी सोच ने देश को गहरे संकट में डाल दिया है . आपदा में अवसर नहीं बल्कि आपदा में एक दूसरे के लिए समर्पित भाव से काम आना है . आपदा को अवसर मानने की बात का मतलब कुछ इस तरह है जैसे किसी की मृत्यु पर गिद्ध आसमान में मंडराने लगते थे . लगता है अब गिद्ध की जगह ऐसे लोग आगे आ रहे हैं . जीवन मूल्यों की रक्षा तभी हो सकेगी जब इस संकट के दौर में मनुष्य के बीच मानसिक अलगाव खत्म करने के प्रयास जारी रहेंगे .

परिचर्चा में अपनी बात रखते हुए सुनीता त्यागी ने कहा कि पूंजीवादी व्यवस्था में मानवीय संवेदनाओं के लिए कोई जगह नहीं है . पूंजीपति को हर चीज में मुनाफा नजर आता है . कोरोना काल में भी उन्होंने आपदा को अवसर बनाया . हमेशा देखने को मिला है कि जब भी देश पर संकट आता है पूंजीपति इस मौके का भरपूर फायदा उठाते हैं और अपना कारोबार बढ़ाते हैं . इस संकट के समय नेता नायक की जगह खलनायक बन गए . वोट के सौदागर मौत के सौदागर बन गए . 

समाज में एक दूसरे को छोटा समझने की बढ़ती प्रवृत्ति ने जीवन मूल्यों के खतरे को गहरा किया है . कोरोना काल में कुछ वर्ग विशेष की संपत्ति में अति वृद्धि हुई है . ऐसे मौके पर सरकार ने कहीं भी छापेमारी नहीं की है . हर चीज के दाम बढ़े हैं जिन पर सरकार का किसी तरह का नियंत्रण देखने को नहीं मिल रहा है . कोरोना काल में पूरी दुनिया में पूंजीवाद मजबूत हुआ है .गरीब कमजोर और लाचार हुआ है. कोरोना काल में सामाजिक विषमता को भी बढ़ावा मिला है . दो गज दूरी तो सही है , लेकिन दिल की दूरियां बढ़ गई हैं .

इसी कड़ी में चंद्र शीला गुप्ता ने अपनी बात रखते हुए कहा कि वैश्वीकरण के दौर में कोरोना काल में खासतौर पर आम आदमी की बदहाली बढ़ी है . कोरोना काल में  महामारी को लेकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का गंदा खेल खेला गया . एक वर्ग विशेष को कोरोना फैलाने के लिए गलत तरीके से जिम्मेदार ठहराते हुए दुष्प्रचार किया गया . इधर शराब धड़ल्ले से बिक रही है लेकिन आम जरूरत की चीजें नहीं मिल पा रही हैं . आज भी करोड़ों की संख्या में ऐसे लोग हैं जो जरूरतमंद होते हुए भी गरीबी रेखा कार्ड से वंचित हैं , ऐसे परिवारों को कोरोना काल में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है . 

देखने में आ रहा है कि आर्थिक तंगी के चलते घर परिवार में हिंसा को बढ़ावा मिला है . बहुत जगह आत्महत्याओं के मामले भी सामने आए हैं . शराब की दुकानें खुली रहने के कारण घरेलू झगड़े बढ़ी हैं . सरकार के द्वारा शराब को राजस्व आमदनी का जरिया बताना ठीक उसी तरह की बात है जैसे कोई गरीब अपना खर्च न चलाने की स्थिति में अपनी बेटी की इज्जत नीलाम कर दे . निजी करण के बढ़ावे के चलते कॉर्पोरेट जगत को बहुत फायदा पहुंचाया गया है . छोटी पूंजी वाले उद्यमियों को घर बैठना पड़ गया है 

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