हमारी भारतीय संस्कृति ने सदैव ही नारी जाति का स्थान पूज्यनीय एवं वन्दनीय रहा है, नारी का रूप चाहे मां के रूप में हो, बहन के रुप में हो, बेटी के रुप में हो या फिर पत्नी के रूप में हो सभी रुपों में नारी का सम्मान किया जाता है। यह बात आदिकाल से ही हमारे पौराणिक गाथाओ में विद्यमान रही है और आज भी जगह –जगह देवी के रुप में पूजी जाती हैं। नौ रात्रों में कन्या खिलाने की प्रथा आज भी विद्यमान है। हमें यह भी ज्ञात है कि नारी प्रेम, स्नेह, करूणा एवं मातृत्व की प्रतिमूर्ति है। इसलिए नारी का ख्याल रखना जरुरी है। दूसरे शब्दों में कहे तो नारी क सम्मान जग का कल्याण। यह कहना है लाल कला मंच के संस्थापक सचिव,वरिष्ठ समाजसेवी,पत्रकार एवं दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल का।
महिलाओं की दशा को सुधारने के लिए सबसे पहले अमरिकी सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर 28 फरवरी 1909 के महिला दिवस नाया गया। इसके बाद फरवरी के अंतिम रविवार को मनाया गया। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का दर्जा दिया गया । इसका मुख्य उदेश्य महिलाओं को वोट का अधिकार दिलाना था। कलान्तर में महिलाओं की जागरुकता के लिए बहुत काम हुआ और 8 मार्च 1921 से अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाते आ रहे है और इसका परिणाम भी दिखने लगा है।
भारत की बात करे तो यहां नारी की दीनहीन दशा देखकर कई समाज सुधारको ने प्रयत्न किया और आज सरकारी स्तर पर इन्हे समान दर्जा प्राप्त है। राजाराम मोहन राय के अथक प्रयास से सती प्रथा का अंत हुआ । फिर नारी की दशा सुधारने के लिए आचार्य विनोवा भावे ,स्वामी विवेकानंद ने भी काम किया। ईश्वर चंद विद्या सागर के प्रयास से विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 आया। नारी की स्थिति सुधारने के लिए- अनैतिक ब्यापार रोकथाम अधिनियम-1956,दहेज रोक अधिनियम-1961,पारिश्रमिक एक्ट 1976,मेडिकल टर्म्मेशन आँफ प्रिगनेंसी एक्ट 1987,लिंग परीक्षण तकनीक( नियंत्रक और गलत इस्तेमाल)एक्ट 1994, बाल विबाह रोकथाम एक्ट 2006,कार्य स्थलो पर महिलाओं का शोषण एक्ट 2013 आदी महिलाओं के सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक स्तर सुधारने के लिए काफी प्रयास किये गये है। इसी का परिणाम है कि 2001 की जनगणना में जहा महिलाओं की संख्या प्रति 1000 पुरुषों पर 933 थी जो 2011 की जनगणना में 943 हो गई यानी एक दशक में प्रति 1000 पर 10 की वृद्धि हुई । भारत में 13 फरवरी के महिला दिवस मनाने की घोषणा सरोजनी नायडू के जन्मदिवस पर 2014 में की गई ।
आज विश्व की आधी आबादी महिलाओं की है, लेकिन भारतीय समाज में महिला को वह स्थान आज तक प्राप्त नहीं हो सका है जिसकी वह हकदार है। भारतीय समाज सदैव से ही पुरुष प्रधान समाज माना गया है, लेकिन 21 वीं सदी में अब स्थिति बदलने लगी है। स्त्रियों को पुरुष के समान दर्जा दिया जाने लगा है।आज भारतीय महिलाये प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर अपना योगदान दे रही है।चाहे बात शिक्षा की हो, बैंकिंग क्षेत्र की हो, स्वास्थ्य की हो,रक्षा की हो, मनोरंजन की हो,रेल चलाने की हो या हवाई जहाज उड़ाने की, आई.टी. क्षेत्र हो अथवा राजनैतिक क्षेत्र हो हर क्षेत्र में सक्रिय हैं।कई राज्यो ने तो स्थानीय निकाय चुनावों में 50 % का आरक्षण भी दिया गया है। इसके विपरीत हमारे देश में महिलाओं पर अत्याचार की बढ़ती घटनाओं ने भारतीय नारी की सुरक्षा पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। देश की राजधानी दिल्ली सहित कई प्रदेशों में नारी के साथ अत्याचार अभी भी जारी है।
पितृसतात्मक सत्ता में नारी को सम्बल बनाने की जरुरत है ताकि इनकी सामाजिक,आर्थिक औऱ राजनैतिक स्तर सशक्त हो सके। आज समस्त समाज एकजुट होकर , नारी सम्मान एवं उसकी सुरक्षा के सम्मान का संकल्प लेना चाहिय़े। हम जानते हैं कि नारी के बिना सृष्टि सृजन की कल्पना अधूरी है। वंश चलाने की बात करने वालों लड़के को भी नारी ही जन्म देती है। इसके सहयोग के बिना लड़का हो या लड़की कोई भी पैदा नही हो सकता है। जिस प्रकार कोई भी पक्षी एक पंख के सहारे उड़ नहीं सकता, उसी प्रकार नारी के बिना पुरुष की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यदि हम नारी को भयमुक्त वातावरण देने और आत्मसम्मान के साथ खड़ा करने में सहयोगी बन सके, तो यह हमारे औऱ समाज के लिए गर्व की बात होगी।
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