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लेखराज माहेश्वरी जिसने पूरा जीवन समर्पित कर दिया हस्तशिल्प व हेंडीक्राफ्ट एक्सपोर्ट प्रमोशन से जुड़ कर

० आशा पटेल ० 

जयपुर। लेखराज माहेश्वरी एक जाना पहचाना नाम है जिसने पूरा  जीवन ही समर्पित कर दिया  राजस्थान के  हस्तशिल्प और हेंडीक्राफ्ट एक्सपोर्ट को संवारने में। दरअसल  उन्हें जानने के लिए हमें  इतिहास के पन्ने उलटाने होंगे। बात बहुत पुरानी है , लेखराज  माहेश्वरी  ने  1971 में आए पाक विस्थापितों के एंब्रॉइडरी वर्क को संरक्षण दिया, रोजगार के साथ हुनर को मिली इंटरनेशनल पहचान बाड़मेर के जूझारु  एक्सपोर्टर लेखराज माहेश्वरी अपने समर्पण से  आज ईपीसीएच के सर्वोच्च पद तक पहुंचे। 

1971 में भारत-पाक जंग के बाद एक लाख से ज्यादा शरणार्थी भारत पहुंचे थे। इसमें से आधे राजस्थान पहुंचे। भारत में न तो उनका कोई ठिकाना था और न ही रोजगार। विपरीत परिस्थितियों में उन्हें पाकिस्तान छोड़कर भारत आना पड़ा। परिस्थितियां ऐसी थी कि इन परिवार को शरण देने और उन पर विश्वास करने वाला कोई नहीं था। इनमें से कुछ लोग हाथ का हुनर जानते थे, लेकिन इसकी परख करने वाला कोई नहीं था। बाड़मेर मूल के लेखराज माहेश्वरी ने इन लोगों की मदद के साथ उन्हें रोजगार देने का बीड़ा उठाया। 


उल्लेखनीय है कि  माहेश्वरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल फॉर हैंडीक्राफ्ट के पूर्व अध्यक्ष  रह चुके हैं।  एक  खास बातचीत में उन्होंने वर्ष 1971 में भारत आए पाक विस्थापितों से जुड़े अपने स्मरण सुनाए। लेखराज बताते हैं कि उन्होंने इन परिवारों को बसाने के लिए सालों तक प्रयास किया। वर्ष 1971 में भारत पहुंचे लोगों में महिलाओं व पुरुषों के कपड़ों पर एंबॉइडरी का कार्य हुआ करता था। यह हमारे देश में बहुत पसंद किया जाता था। उन्होंने इन कपड़ों की कद्र  जानी और उनके कपड़े खरीदे तथा ऐसे कपड़े तैयार करने के लिए उन्हें अपने साथ लिया। उनके कपड़ों की तर्ज पर कपड़े तैयार कर उन्होंने उस जमाने में दिल्ली जाकर डोर-टु-डोर प्रॉडक्ट बेचे। वर्ष 1975 में उनकी मुलाकात जयपुर की एक महिला से हुई जो ट्रेडिशनल कपड़ों का बड़ा काम किया करती थीं। उस महिला ने बड़ा काम दिया और लेखराज माहेश्वरी ने बड़े स्तर पर काम शुरू कर दिया।

वर्ष 1976 में उन्होंने पाक विस्थापित करीब 20 हजार परिवारों में अपने काम को बांटना शुरू किया। इससे कई लोगों के कुटीर उद्योग स्थापित हुए। इन प्रॉडक्ट्स का क्रेज काफी बढ़ गया था तो उन्होंने वर्ष 1978 में देशभर में प्रदर्शनियां लगाई और बाड़मेर जिले के इस कार्य को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
 
वर्ष 1980 में उन्हें फिर एक बड़ा ऑर्डर मिला और उन्हें मौका मिला कि वे कुछ और लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवा सकें। उन्होंने मोजड़ी बनाने वाले परिवारों को काम देने की शुरुआत की। माहेश्वरी बताते हैं कि इस समय तक तो केवल भारत में उनके प्रॉडक्ट बेचे जाते थे| लेकिन वर्ष 1985 के बाद एक्सपोर्ट की राहें भी खुलने लगी और टूरिस्ट प्लेसेज पर उन्होंने: लोगों को हैंडीक्राफ्ट के प्रॉडक्ट की स्टैंड लगाने  के लिए  प्रोत्साहित किया। उन्होंने 1991 से 1997 तक विभिन्न देशों में जाकर बाड़मेर के इन हैंडीक्राफ्ट आइटम्स को मार्केटिंग की। वर्ष 1997 में वे एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल से जुड़ गए तथा 2001 में वे पहली बार ईपीसीएच के उपाध्यक्ष बने। वे वर्ष 2013 से 2015 तक ईपीसीएच के अध्यक्ष भी रहे तथा वे पिछले 20 सालों से ईपीसीएच के सीओए सदस्य भी हैं। वर्तमान में  लेखराज  माहेश्वरी  ईपीसीएच के सीओए  मेंबर हैं और नार्थ वेस्ट  रीजन के  रीजनल कन्वीनर हैं।  इस रीजन में राजस्थान और मध्यप्रदेश आते हैं. 
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