बुझती आँखों को कि शेष है अभी भी उम्मीद की एक बूँद ।
पेड़ की शाख से विलगित होते पत्ते ,देते यह संदेश कि जीर्ण होना है
एक दिन ऋतु परिवर्तन और आवागमन यही तो है जीवन । . .
फिर क्यों है इतनी भटकन ?
कुछ उत्तरित और कुछ अनुत्तरित प्रश्नों में उलझे है हम ।
इसलिए याचक की भाँति तकते है गगन ।
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