० विजय सिंह बिष्ट ०
ख्वाब होने दो पूरे
ख्वाब अधूरे हों या पूरे,
सार्थक हों या आएं कोरे,
दिन में आएं या सांझ सकारे,
डरावने हों या लगते हों प्यारे,
ख्वाब मत होने दो ,आधे अधूरे,
ख्वाब होने दो पूरे।।
स्वप्न तो मीरा ने भी देखे,
गिरधर को सीने में बिठाया,
दुःख सहे सारे जगत के,
विष को अधरों से लगाया,
कौन छीन पाया ख्वाब उसके?
राधिका का मोहन जिसमें समाया।।
स्वप्न सत्य होते देखे गए,
जो उसी में मन से लगा,
उसी में निशि दिन समाया,
पूर्णता में अधूरा है कहां?
अमावस् भी पूनम बनके आया।।
तूफानों से लड़कर जीत है मिली,
स्वप्न भी उसी के पूरे हुए,
पूर्ण कर अधूरे ख्वाब को,
जो जागकर तुझको मिली।।
हार में भी जीत है,
जीत में हार होती नहीं,
स्वप्न अधूरे पूर्ण कर,
स्वप्न अधूरे होते नहीं।
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