० संवाददाता द्वारा ०
स्वावलंबन शब्द सार के दिल्ली प्रांत की संयोजिका श्रीमती रचना निर्मल नें मधुर कंठ से माँ शारदे की वंदना का गायन किया ၊ संस्था की राष्ट्रीय सह-संयोजिका श्रीमती भावना सक्सेना, आगन्तुक मुख्य अतिथि राहुल लाल जो ,प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक एवम् वक्ता है एवम् कार्यक्रम अध्यक्ष प्रसिद्ध वरिष्ठ कवयित्री व लेखिका श्रीमती सुदर्शन रत्नाकर का गर्मजोशी से स्वागत किया ၊ कार्यक्रम में स्वावलंबन ट्रस्ट की राष्ट्रीय अध्यक्ष मेघना श्रीवास्तव की गरिमामय उपस्थिति रही ၊ इसके अलावा स्वावलंबन ट्रस्ट के महामंत्री राघवेंद्र मिश्रा,संगठन मंत्री विनय खरे ,उपाध्यक्ष वीरेंद्र गौड़ , दिल्ली प्रांत अध्यक्ष ममता सोनी की सक्रिय सहभागिता रही ၊ कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डा० मुक्ता डा० दुर्गा सिन्हा 'उदार' ,सुरेखा शर्मा शकुंतला मित्तल , सुषमा भंडारी की गरिमामय उपस्थिति दर्ज हुई ၊
कार्यक्रम का सुचारू मंच संचालन उत्तर प्रदेश प्रांत संयोजिका श्रीमती सीमा सिंह एवम् कर्नाटक प्रांत संयेाजिका श्रीमती स्वीटी सिंघल द्वारा किया गया ၊
काव्य गोष्ठी विषय मुक्त थी अतः काव्य के अनेक रस समाहित हुए ၊ कुछ रचनाएं इतनी मार्मिक थी कि लोग भावविभोर हो उठे ၊
काव्य गोष्ठी विषय मुक्त थी अतः काव्य के अनेक रस समाहित हुए ၊ कुछ रचनाएं इतनी मार्मिक थी कि लोग भावविभोर हो उठे ၊
मुख्य अतिथि राहुल लाल नें साहित्यकारो को समाज का सच्चा मार्गदर्शक बताया | कार्यक्रम अध्यक्ष श्रीमती सुदर्शन रत्नाकर नें साहित्यकारों से सकारात्मक लेखन की अपील की और लेखन की सार्थकता पर बल दिया और पुरजोर शब्दो में कहा कि कम लिखे लेकिन बेहतर लिखे ၊राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती मेघना श्रीवास्तव ने स्वावलंबन ट्रस्ट की समाजिक गतिविधियों के बारे में विस्तृत जानकारी साझा की၊ ममता सोनी द्वारा लिखित उपन्यास 'बिखरे मोती' पर संक्षिप्त परिचर्चा भी हुई ၊कार्यक्रम के अंत में राष्ट्रीय संयोजिका परिणीता सिन्हा नें सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया ၊
कलमकारों की पंक्तियों कुछ अंश यूँ हैं -
1.औरत का अंतर्मनगहरे सागर की मानिंद
अनगिनत तूफ़ान, भावोद्वेलनव कटु-मधुर स्मृतियों का आग़ार (डॉ० मुक्ता)
2. पगडंडी जो थी संकरी और छोटी
वही दिल के सबसे करीब है होती (मोना सहाय)
3.आज़ादी का श्रेय अहिंसा लेती जब-जब
साहसी वीरों के बलिदान हवि होते हैं(भावना सक्सैना)
4 जब-जब चोट लगी मेरे तन को
याद तुम्हीं क्यों आईं माँ.(श्रुतिकृति अग्रवाल)
5. ज़िंदगी जीने का हुनर हमने सीख लिया
दर्द के साथ है बसर, हमने सीख लिया।(स्वीटी सिंघल ‘सखी’)
6.मृत्यु का भय मुझे सताता हर पल जी घबराता ।
पलने दो तुम मुझे गर्भ में, मुझे न मारो माता।( सुरेखा शर्मा )
7.“अरमान अपने जीने का किया कीजिये ,खुद के लिए भी थोड़ा-थोड़ा जिया कीजिए
माना ‘ उदार ‘ हमने देखा नहीं उसे,फिर भी उसी की चाह में ही, जिया कीजिए ।।” (डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार)
8.यहाँ मानवता की बलि देख / यह मन मेरा धिक्कार उठा |
अब गरज उठी यह लेखनी भी /हाय कैसा है हाहाकार उठा (लता सिन्हा ज्योतिर्मय)
9 हम तुम्हारे हैं,तुम्हारे हो कर ही मर जाएँगे
तु मसे ही जीवन हमारा,तुमसे ही ये श्वास हैं। .(शकुन्तला मित्तल)
10मेरा इठलाना नभ को चुभ जाएगा ,वो मुझे आगोश मे असुरक्षित बताएगा|
और आ गयी जो मैं उसकी बात में ,पल मे मुझे लील जाएगा |(परिणीता सिन्हा )
11.गिरती सँभलती बारहा देखी गई पतंग
फिर भी हवा के ज़ोर से लड़ती गई पतंग(रचना निर्मल)
12.देश काल सीमा से पड़े ,ये समाज का कल्याण है
ये दृढ़ कदम कन्यादान है|(सीमा सिंह)
13.वीर सपूतों भारत माँ को'हरदम ये अभिमान रहेगा
देश की खातिर जान गंवा दी,हरदिल में सम्मान रहेगा।। (सुषमा भंडारी)
14तन्हाईनम आंखों की कोरों से ,वह तुम्हे खोजती प्राण प्रिये..,
तन्हाई के वीराने में --मै ,ढूंढ रहा था --उसमें तुम ना मिली..,( शशि कांत श्रीवास्तव)
१५. तुम नें मौन से क्या पाया? हे ! यशोधरा
मेरा मन मुझ से हमेशा सवाल करता हैं |(जूली सहाय )
१६.उस दिन जब संध्या को सूरज निकला था मेरे अंगना,
चांद गगन से देख रहा था गोदी में मेरा ललना!(चंचल हरेन्द्र वशिष्ट)
१७.मैं धरती, तुम आकाश कभी फटना, कभी डोलना
कहीं तपना, कहीं डूबना क्यों है मेरी तकदीर (निवेदिता सिन्हा)
१८.गाँधी तुम तो जीत गये ,बिन तीर तलवारों के(डा० दर्शिनी प्रिया)
१९पुरुषपन महीने की पहली तारीख |
स्त्रीपन आखिरी तारीख है |(प्रवीण राही)
२०.दौप्रदी ने ताका था केशव को
भर नयनो मे नीर
मूक सा वो अविरल रूदंन
जाता था हृदय को चीर (चंचल ढींगरा)
कलमकारों की पंक्तियों कुछ अंश यूँ हैं -
1.औरत का अंतर्मनगहरे सागर की मानिंद
अनगिनत तूफ़ान, भावोद्वेलनव कटु-मधुर स्मृतियों का आग़ार (डॉ० मुक्ता)
2. पगडंडी जो थी संकरी और छोटी
वही दिल के सबसे करीब है होती (मोना सहाय)
3.आज़ादी का श्रेय अहिंसा लेती जब-जब
साहसी वीरों के बलिदान हवि होते हैं(भावना सक्सैना)
4 जब-जब चोट लगी मेरे तन को
याद तुम्हीं क्यों आईं माँ.(श्रुतिकृति अग्रवाल)
5. ज़िंदगी जीने का हुनर हमने सीख लिया
दर्द के साथ है बसर, हमने सीख लिया।(स्वीटी सिंघल ‘सखी’)
6.मृत्यु का भय मुझे सताता हर पल जी घबराता ।
पलने दो तुम मुझे गर्भ में, मुझे न मारो माता।( सुरेखा शर्मा )
7.“अरमान अपने जीने का किया कीजिये ,खुद के लिए भी थोड़ा-थोड़ा जिया कीजिए
माना ‘ उदार ‘ हमने देखा नहीं उसे,फिर भी उसी की चाह में ही, जिया कीजिए ।।” (डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार)
8.यहाँ मानवता की बलि देख / यह मन मेरा धिक्कार उठा |
अब गरज उठी यह लेखनी भी /हाय कैसा है हाहाकार उठा (लता सिन्हा ज्योतिर्मय)
9 हम तुम्हारे हैं,तुम्हारे हो कर ही मर जाएँगे
तु मसे ही जीवन हमारा,तुमसे ही ये श्वास हैं। .(शकुन्तला मित्तल)
10मेरा इठलाना नभ को चुभ जाएगा ,वो मुझे आगोश मे असुरक्षित बताएगा|
और आ गयी जो मैं उसकी बात में ,पल मे मुझे लील जाएगा |(परिणीता सिन्हा )
11.गिरती सँभलती बारहा देखी गई पतंग
फिर भी हवा के ज़ोर से लड़ती गई पतंग(रचना निर्मल)
12.देश काल सीमा से पड़े ,ये समाज का कल्याण है
ये दृढ़ कदम कन्यादान है|(सीमा सिंह)
13.वीर सपूतों भारत माँ को'हरदम ये अभिमान रहेगा
देश की खातिर जान गंवा दी,हरदिल में सम्मान रहेगा।। (सुषमा भंडारी)
14तन्हाईनम आंखों की कोरों से ,वह तुम्हे खोजती प्राण प्रिये..,
तन्हाई के वीराने में --मै ,ढूंढ रहा था --उसमें तुम ना मिली..,( शशि कांत श्रीवास्तव)
१५. तुम नें मौन से क्या पाया? हे ! यशोधरा
मेरा मन मुझ से हमेशा सवाल करता हैं |(जूली सहाय )
१६.उस दिन जब संध्या को सूरज निकला था मेरे अंगना,
चांद गगन से देख रहा था गोदी में मेरा ललना!(चंचल हरेन्द्र वशिष्ट)
१७.मैं धरती, तुम आकाश कभी फटना, कभी डोलना
कहीं तपना, कहीं डूबना क्यों है मेरी तकदीर (निवेदिता सिन्हा)
१८.गाँधी तुम तो जीत गये ,बिन तीर तलवारों के(डा० दर्शिनी प्रिया)
१९पुरुषपन महीने की पहली तारीख |
स्त्रीपन आखिरी तारीख है |(प्रवीण राही)
२०.दौप्रदी ने ताका था केशव को
भर नयनो मे नीर
मूक सा वो अविरल रूदंन
जाता था हृदय को चीर (चंचल ढींगरा)
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