श्रीमती उमेश नाग,जयपुर
बड़ी विडम्बना है ,
जो इंसान करता भरण -
पोषण संसार का आज
वही परेशाँ है।
किसान नहीं यह इंसान
रूप भगवान हैं।
जीवित रहें हर प्राणी
जरूरतें सारी पूरी करता है।
यह देव स्वरूप इंसान नहीं
साक्षात जीवनदाता व अन्नदाताहैं।
मिट्टी से फसल उगाता,
पशुधन से दूध,दही, मक्खन,
घी का प्रदाता है।
आलस न जरा सा करता,
मन से उत्साहित रहता।
कितनी भी परेशानी आऐ,
साहस नहीं खोता है।
सदा हँसता बोलता और
गाते खेत खलिहानों में-
व्यस्त रहता हैं ।
न धूप की परवाह न काली,
रात से डरता है बस फसल;
के तैयार होने तक दिन रात
एक कर देता हैं।
मेहनत करता,संयम ,
पूरा रखता हैं ।
देश के हर जन-जीव का,
पेट भरता एवं जीवनदाता हैं।
विधाता की अनहोनी तो देखो,
आज अन्नदाता खुद -
शोकाकुल व कर्जदार हुआ है।
बेबसी में आत्महत्या कर रहा ।
दूजों को सेहत और ,
जीवन देता, उसी की आज-
जान पर आई है।
चाहत नही उसे धन वैभव की,
मिले उचित मूल्य व सम्मान-
बस यही चाहत है इन ,
किसानों की।
धरा के लाल हैं,फसलों से,
संवारते सजाते धरती को ;
यही धरा इनकी माता है।
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सदा जय जवान, जय किसान,
का नारा गूँजे-
दूजे न कोई हमें नारा सोहे।
कभी कभी खुद भूखा सोता
उगाकर अन्न किसान,
देश के रक्षण हेतु स्वयं-
होजाता है क़ुर्बान जवान।
उगाकर अन्न किसान,
देश के रक्षण हेतु स्वयं-
होजाता है क़ुर्बान जवान।
स्वेद बसाता धूप में जहाँ किसान
वहीं हो जाता राष्ट्र रक्षा हेतु,
सीमा पर शहीद जवान ।
वहीं हो जाता राष्ट्र रक्षा हेतु,
सीमा पर शहीद जवान ।
तभी तो शास्त्री जी उन्मुक्त हो,
दिया " जय जवान जय किसान "
का नारा।
दिया " जय जवान जय किसान "
का नारा।
परिवार का सुख त्याग कर,
इक फौजी हमारी रक्षा के लिए;
सीमा पर सिने पर खाता गोली।
सरहद पर खून बहा कर,
महज सलामी पाता फौजी।
इक फौजी हमारी रक्षा के लिए;
सीमा पर सिने पर खाता गोली।
सरहद पर खून बहा कर,
महज सलामी पाता फौजी।
जब देशवासी चैन से सोते हैं,
तब जवान बर्फ में जागे होते हैं।
तब जवान बर्फ में जागे होते हैं।
ऋणी हैं हम,न मिलता इनको,
उचित प्रतिदिन-
यद्यपि ' ये 'करते अपना तन;
मन प्राण बलिदान।
उचित प्रतिदिन-
यद्यपि ' ये 'करते अपना तन;
मन प्राण बलिदान।
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