जयपुर, पर्यावरण और पेपर रिसाईक्लिंग की दृष्टि से पेपरमेशी आर्ट अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल में यह आर्ट हमारी दैनिक जीवन शैली का एक हिस्सा था। पेपरमेशी आर्टिस्ट, हिम्मत सिंह ने यह बात आर्टिस्ट कम्यूनिटी ‘द सर्किल‘ के लिये आयोजित दक्षिण भारत के पुडुचेरी की पारम्परिक तिरुकनूर पेपरमेशी आर्ट वर्कशॉप में कही। रूफटॉप ऐप द्वारा आयोजित एवं राजस्थान स्टूडियो द्वारा प्रस्तुत इस वर्कशॉप का आयोजन आजादी का अमृत महोत्सव - सेलिब्रेटिंग इंडिया एट 75 के तहत किया गया। उन्होंने आगे बताया कि इस पेपरमेशी से बने बर्तनों में अनाज, आटे, दालों के स्टोरेज में काम लेते थे। पेपरमेशी से डिकोरेटिव प्रोडक्ट, पूजा एवं किचन के सामान भी बनाये जाते हैं।
वर्कशॉप के दौरान हिम्मत सिंह ने बताया कि सर्वप्रथम कागज को तीन दिन के लिए पानी में भिगो देते हैं। इसके बाद इसके पानी को बदल कर इसे तब तक ब्लेंड करतें हैं जब तक कि इसका पेस्ट ना बन जाए। इस पेस्ट में से गंदगी और स्याही को हटाने के लिए इसके पानी को बदला जाता है। इसके बाद इस पेस्ट में मुल्तानी मिट्टी गुंथ कर डो (daugh) बना लेते है जिसको इच्छानुसार आकृति में ढ़ाल दिया जाता है।
उल्लेखनीय है कि तिरुकनूर पेपरमेशी शिल्पकला देश के इतिहास में शिल्प की सबसे प्राचीन स्वरूपों में से एक है। फ्रांसीसियों द्वारा इस तकनीक को पुडुचेरी लाया गया था। कागज को मैश करके इसे बनाया जाता है। पुडुचेरी के इस शिल्प को वर्ष 2010 में ज्योग्राफिकल इंडीकेशन टैग मिलने से इसे लोकप्रियता मिली। हिम्मत को पेपरमेशी कला में 20 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्हें इस कला का उपयोग करके खिलौने, आर्ट पीस, बर्तन आदि बनाने में महारत हासिल है। पेपरमेशी तकनीक उन्होंने अपनी दादीसा से सीखी जो इस कला का उपयोग कर दैनिक उपयोग की घरेलू चीजें बनाती थीं।
एक टिप्पणी भेजें