० योगेश भट्ट ०
उत्तराखंड के उत्तरकाशी के मध्य विशाल प्राचीनतम भगवान विश्वनाथ का मंदिर स्थित है। यहाँ वर्ष भर ब्रह्ममुहूर्त में भक्तगण भागीरथी के निर्मल जल से शिवलिंग का अभिषेक करने आते हैं। माना जाता है कि पहले यहाँ शिव का छोटा मंदिर था। समय गुजरने के साथ ही यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण होने लगा था। मंदिर का जीर्णोद्धार दौलतराम नेपाली चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा बाबा काली कमलीवाला क्षेत्र की सहायता से वर्ष १९१० में करवाया गया था। गढ़वाल नरेश सुदर्शन शाह ने भी विक्रमी संवत १९१५ यानी १८५७ ईस्वी में इसी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
आसपास के लोग बताते हैं कि टिहरी नरेश को सपने में शिव भगवान ने उत्तरकाशी में अपना मंदिर बनवाने का आदेश दिया था। शिवलिंग यहाँ पहले से ही स्थापित था। मंदिर के लिए जब वेदी का निर्माण शुरू हुआ तो वेदी की ऊँचाई के साथ-साथ शिवलिंग स्वत: ऊंचा होता गया। बढ़ते-बढ़ते इसकी ऊँचाई १० फीट हो गई। पुन: शिव भगवान ने राजा को इतनी ही ऊँचाई पर मंदिर बनवाने का आदेश दिया।
यह प्रसिद्ध मंदिर गढ़वाल की परंपरागत कत्यूरी पद्धति पर १० फीट ऊँचे पत्थरों से निर्मित विशाल चबूतरे पर बना है। गर्भगृह के मध्य शिव का विशाल, प्राकृतिक शिवलिंग है, जिस पर तांबे के घड़े से अनवरत पानी की बूँदें टपकती हैं और शिव का अभिषेक होता है। एक ओर गणेश जी की संगमरमर की तथा उससे आगे देवी पार्वती की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। सभामंडप में शिवलिंग की ओर उन्मुख वाहन नंदी की मूर्ति है। सभामंडप के बाहरी दरवाजे के दोनों ओर एक-एक चतुष्किका है। एक में यज्ञ कुड है तथा दूसरी पर भक्तजन विराजमान हो सकते हैं। द्वार के दाईं ओर एक शिलालेख भी मौजूद है।
विश्वनाथ मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही दोनों ओर एक-एक छोटा मंदिर है। एक में विशाल आकार की गणेश जी की प्राचीन प्रतिमा है और इसके समीप ही भैरव की प्रतिमा भी स्थापित है। मंदिर के प्रांगण में साक्षी गोपाल तथा मार्कण्डेय मंदिर भी हैं। दोनों मंदिरों के मध्य में अर्घा में स्थापित शिवलिंग तथा कुछ भग्न प्रतिमाएँ भी स्थित हैं।
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