० रूपेंद्र राज तिवारी ०
भोपाल - अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच द्वारा गूगल मीट पर पावस सम्मेलन आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आरंभ साधना वैद्य द्वारा स्वरबद्ध सरस्वती वंदना से हुआ, अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की संस्थापक वरिष्ठ लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने कार्यक्रम की अध्यक्ष सरस दरबारी, विशिष्ट अतिथि डॉ विद्या सिंह एवं सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा
" पावस केवल बारिश की बूंदे, बरसात और वर्षा ही नहीं होता ,पावस होता है धरती से जुड़ा एक ऐसा मौसम जिस पर हमारा जीवन निर्भर करता है। उन्होंने अपनी कविता में भी यह बात स्पष्ट करते हुए बचपन की बारिश को याद किया । मुझे याद आती है बचपन की बारिश /वो कागज की कश्ती में नटखट सी बारिश /वो भुट्टों में सिंकती सोंधी सी बारिश/ कहां है, कहां है वो बचपन की बारिश।
अलका अग्रवाल ने अपनी कविता से किया.. बादल मुझसे मिलने आए/कोहरा बन धरती पर छाए.
हेमलता सुमन ने कविता पढ़ी..मन का पपिहा करे पुकार /ढूँढ रहा तुमको घर द्वार अनुपमा झा की कविता की पंक्तियाँ ..पृथा भीग गई/पावस सीझ गई/हुआ मन तृप्त
डॉ मीता माथूर ने अपनी कविता में कहा..नभ में आते-जाते बादल/जैसे सुख का आना-जाना/दुःख-सुख से ही बुना हुआ है/इस जीवन का ताना-बाना।
डॉ मंजुला पाण्डेय की कविता भर देती है बारिश की फुहार/उमंग ,उल्लास/ गति सूने से मेरे मन के आंगन में.
निलीमा मिश्रा की कविता..नदिया सूखी अलसाई पड़ी/पनघट पर उदास रुपा खड़ी/कैसे भरे जल सूखी बावड़ी,
वहीं पर तुम खूब बरसो बादल.
मधुलिका सक्सेना ने सुमधुर शब्दों में मनभावन सरसावन सावन
आयो री / आलि आयो री...सुनाया
लता तेजेश्वर ने अपनी कविता पढ़ी.. वर्षा ऋतु में तलाब तलैया बड़ी सुहानी लगती है/बरसो मेघा प्यारे,धरती सजल सजती संवरती है. वहीं निधि मद्धेशिया ने सुंदर पंक्तियाँ कहीं.. पाहुँन बन गए सपन सारे/लौटे पावस पथ नैन निहारे.
विद्या गुप्ता ने सुंदर कविता कही शुक्रिया पावस तुम आए धरा गगन तक पावन गंध भर लाये/ वर्तमान के रूखे स्वर थे खीज खीज से भरी दोपहर थी/ उलझा उलझा हर पहर था /
/मलय झकोरों के साजो/ में रिमझिम संगीत भर लाए.
पारमिता षड़गी ने अपनी कविता में सुंदर बिम्ब उकेरे..झरोख़े को खोल दिया/भीतर आ गये तुम/किश्तों में छू गए मुझे/भीग रही थी मेरी/अंजली का आकाश. डॉ मधु त्रिवेदी की कविता का सुंदर राग ..पावस पावनी बरखा/बाँधै है पैरों घुघरूँ/मस्त फुहारों में झूमती /बाधे है पैरों घुघरूँ
किसान गीत गायेंगे/बखरेंगे खेत सूखे ताल तलैय्या/भर लेंगे झोली
चहुंओर हरियाली होगी/खुशहाली होगी.
डाॅ रोचना भारती जी ने मार्मिक कविता पढ़ी.. ऐ बादल जरा थम के बरसना/तप रहा था रवि की तपन से भूखण्ड/
अहा ! स्वच्छ गगन में छाए श्यामल में मेघखण्ड .
संतोष झांझी जी ने सुमधुर गीत से समां बांध दिया..जिसके के बोल..
तन मन भिगोये है ऐसे क्यों बारिश का पानी/नादां समझता है इसको सावन की नादानी.
संतोषी श्रद्धा की सुमधुर आवाज़ में उनका लिखा गीत गोष्ठी को चार चांद लगा गया..रंगों के सातों घट बरखा
ने फिर आज उड़ेल दिए!/ पूर्वा, मेघ, बूंद ने आकर/वसुंधरा से मेल किए.
अमर त्रिपाठी की कविता ने स्त्री प्रेम की सुंदर परिभाषा गढ़ी..अक्सर नारी /झूठ नही बोलती / कभी-कभी खुद को सही साबित करने के लिए
और असरदार/बनाए रखने के लिए झूठ का सहारा लेती है/दाल में नमक की तरह.
विशिष्ट अतिथि विद्या सिंह ने आयोजन तथा प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करते हुए शुभकामनाएं दीं तथा स्व रचित कजरी से पावस गोष्ठी को और भी सार्थक किया.. गाए बदरिया मल्हार सखी री सावन आयो/ डाल- डाल पर झूले पड़े हैं/ कजरी की छाई बहार सखी री सावन आयो.
कार्यक्रम की अध्यक्ष सरस दरबारी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि कितनी प्रतीक्षा के बाद तो यह ऋतु आती है।जब भीषण गर्मी से क्लान्त, सूरज का ताप असहनीय हो जाता है तब ढोल नगाड़ों बादलों की गड़गड़ाहट, दामिनी की चुँधियाने वाली आतिशबाजी के साथ पावस ऋतु आती है।और उत्सव का मौसम आ जाता है। आज मंच पर वही उत्सव मनाया गया।भावनाओं की फुहारें खूब बरसीं और हम उसमें सराबोर होते रहे। बहुत ही सुंदर रचनाएँ पढ़ी गयीं और गायन तो अद्भुत था. अपनी कविता में बचपन की बरसात को याद करते हुए पंक्तियाँ कहीं.. सखी बरखा/याद आते हैं बचपन के वे दिन/जब कागज़ की कश्तियों की रेस में/तुम मुस्कुराकर आश्वस्त करतीं/.घबराओ नहीं/तुम्हारी कश्ती नहीं डूबने दूँगी .
वयोवृद्ध साहित्यकार संतोष झांझी ने कार्यक्रम में शुभकामनाएं देते हुए आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम में अन्य सदस्य भी उपस्थित रहे जिनमें विजय कांत वर्मा जी, महेश राजा जी, मुजफ्फर सिद्दकी जी, चरनजीत सिंह जी, नीता तरुण श्रीवास्तव,बबिता गुप्ता जी,निवेदिता जौहरी जी। कार्यक्रम का संचालन रूपेंद्र राज तिवारी ने किया.
भोपाल - अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच द्वारा गूगल मीट पर पावस सम्मेलन आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आरंभ साधना वैद्य द्वारा स्वरबद्ध सरस्वती वंदना से हुआ, अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की संस्थापक वरिष्ठ लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने कार्यक्रम की अध्यक्ष सरस दरबारी, विशिष्ट अतिथि डॉ विद्या सिंह एवं सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा
" पावस केवल बारिश की बूंदे, बरसात और वर्षा ही नहीं होता ,पावस होता है धरती से जुड़ा एक ऐसा मौसम जिस पर हमारा जीवन निर्भर करता है। उन्होंने अपनी कविता में भी यह बात स्पष्ट करते हुए बचपन की बारिश को याद किया । मुझे याद आती है बचपन की बारिश /वो कागज की कश्ती में नटखट सी बारिश /वो भुट्टों में सिंकती सोंधी सी बारिश/ कहां है, कहां है वो बचपन की बारिश।
अलका अग्रवाल ने अपनी कविता से किया.. बादल मुझसे मिलने आए/कोहरा बन धरती पर छाए.
हेमलता सुमन ने कविता पढ़ी..मन का पपिहा करे पुकार /ढूँढ रहा तुमको घर द्वार अनुपमा झा की कविता की पंक्तियाँ ..पृथा भीग गई/पावस सीझ गई/हुआ मन तृप्त
डॉ मीता माथूर ने अपनी कविता में कहा..नभ में आते-जाते बादल/जैसे सुख का आना-जाना/दुःख-सुख से ही बुना हुआ है/इस जीवन का ताना-बाना।
डॉ मंजुला पाण्डेय की कविता भर देती है बारिश की फुहार/उमंग ,उल्लास/ गति सूने से मेरे मन के आंगन में.
निलीमा मिश्रा की कविता..नदिया सूखी अलसाई पड़ी/पनघट पर उदास रुपा खड़ी/कैसे भरे जल सूखी बावड़ी,
वहीं पर तुम खूब बरसो बादल.
मधुलिका सक्सेना ने सुमधुर शब्दों में मनभावन सरसावन सावन
आयो री / आलि आयो री...सुनाया
लता तेजेश्वर ने अपनी कविता पढ़ी.. वर्षा ऋतु में तलाब तलैया बड़ी सुहानी लगती है/बरसो मेघा प्यारे,धरती सजल सजती संवरती है. वहीं निधि मद्धेशिया ने सुंदर पंक्तियाँ कहीं.. पाहुँन बन गए सपन सारे/लौटे पावस पथ नैन निहारे.
विद्या गुप्ता ने सुंदर कविता कही शुक्रिया पावस तुम आए धरा गगन तक पावन गंध भर लाये/ वर्तमान के रूखे स्वर थे खीज खीज से भरी दोपहर थी/ उलझा उलझा हर पहर था /
/मलय झकोरों के साजो/ में रिमझिम संगीत भर लाए.
पारमिता षड़गी ने अपनी कविता में सुंदर बिम्ब उकेरे..झरोख़े को खोल दिया/भीतर आ गये तुम/किश्तों में छू गए मुझे/भीग रही थी मेरी/अंजली का आकाश. डॉ मधु त्रिवेदी की कविता का सुंदर राग ..पावस पावनी बरखा/बाँधै है पैरों घुघरूँ/मस्त फुहारों में झूमती /बाधे है पैरों घुघरूँ
किसान गीत गायेंगे/बखरेंगे खेत सूखे ताल तलैय्या/भर लेंगे झोली
चहुंओर हरियाली होगी/खुशहाली होगी.
डाॅ रोचना भारती जी ने मार्मिक कविता पढ़ी.. ऐ बादल जरा थम के बरसना/तप रहा था रवि की तपन से भूखण्ड/
अहा ! स्वच्छ गगन में छाए श्यामल में मेघखण्ड .
संतोष झांझी जी ने सुमधुर गीत से समां बांध दिया..जिसके के बोल..
तन मन भिगोये है ऐसे क्यों बारिश का पानी/नादां समझता है इसको सावन की नादानी.
संतोषी श्रद्धा की सुमधुर आवाज़ में उनका लिखा गीत गोष्ठी को चार चांद लगा गया..रंगों के सातों घट बरखा
ने फिर आज उड़ेल दिए!/ पूर्वा, मेघ, बूंद ने आकर/वसुंधरा से मेल किए.
अमर त्रिपाठी की कविता ने स्त्री प्रेम की सुंदर परिभाषा गढ़ी..अक्सर नारी /झूठ नही बोलती / कभी-कभी खुद को सही साबित करने के लिए
और असरदार/बनाए रखने के लिए झूठ का सहारा लेती है/दाल में नमक की तरह.
विशिष्ट अतिथि विद्या सिंह ने आयोजन तथा प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करते हुए शुभकामनाएं दीं तथा स्व रचित कजरी से पावस गोष्ठी को और भी सार्थक किया.. गाए बदरिया मल्हार सखी री सावन आयो/ डाल- डाल पर झूले पड़े हैं/ कजरी की छाई बहार सखी री सावन आयो.
कार्यक्रम की अध्यक्ष सरस दरबारी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि कितनी प्रतीक्षा के बाद तो यह ऋतु आती है।जब भीषण गर्मी से क्लान्त, सूरज का ताप असहनीय हो जाता है तब ढोल नगाड़ों बादलों की गड़गड़ाहट, दामिनी की चुँधियाने वाली आतिशबाजी के साथ पावस ऋतु आती है।और उत्सव का मौसम आ जाता है। आज मंच पर वही उत्सव मनाया गया।भावनाओं की फुहारें खूब बरसीं और हम उसमें सराबोर होते रहे। बहुत ही सुंदर रचनाएँ पढ़ी गयीं और गायन तो अद्भुत था. अपनी कविता में बचपन की बरसात को याद करते हुए पंक्तियाँ कहीं.. सखी बरखा/याद आते हैं बचपन के वे दिन/जब कागज़ की कश्तियों की रेस में/तुम मुस्कुराकर आश्वस्त करतीं/.घबराओ नहीं/तुम्हारी कश्ती नहीं डूबने दूँगी .
वयोवृद्ध साहित्यकार संतोष झांझी ने कार्यक्रम में शुभकामनाएं देते हुए आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम में अन्य सदस्य भी उपस्थित रहे जिनमें विजय कांत वर्मा जी, महेश राजा जी, मुजफ्फर सिद्दकी जी, चरनजीत सिंह जी, नीता तरुण श्रीवास्तव,बबिता गुप्ता जी,निवेदिता जौहरी जी। कार्यक्रम का संचालन रूपेंद्र राज तिवारी ने किया.
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