29 जुलाई, 1933 को जन्मे रूपचंद माहेश्वरी दि. 26 मई, 2021 को श्री गिरिराजधरण के श्री चरणों में लीन हो गये। जयपुर में मध्यम वर्गीय परिवार में जन्में श्री रूपचंद माहेश्वरी को मेहनत और ईमानदारी के संस्कार अपने परिवार से मिले। माता गंगादेवी व पिता श्री नंदकिशोर जी दोनों ही धार्मिक प्रकृति के थे। मध्यमवर्गीय कठिनाईयों और विकट परिस्थितियों में भी संघर्ष की भावना उन्होनें अपने पुत्र में कूट-कूट कर भरी।
सन् 1958 देश में आजादी के बाद एक नए दौरे की शुरूआत हो चुकी थी। ऐसे में जयपुर में पेट्रोल पंप तथा होटल जयपुर अशोक में रात-दिन एक परिश्रम कर रहा एक 25 वर्षीय नवयुवक एक अंग्रेजी समाचार पत्र ‘राजस्थान क्राॅनिकल‘के प्रकाशक श्री कर्तार सिंह नारंग के सम्पर्क में आया और उस समाचार पत्र के विज्ञापन व मार्केटिंग भागीदार बन गया। इस कार्य के लिए श्री माहेश्वरी ने 1958 में एक विज्ञापन एजेंसी ‘राजस्थान पब्लिसिटी संेटर’ की स्थापना की जो आगे चलकर सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए राजस्थान विज्ञापन जगत की शीर्ष और उत्तर भारत की 10 सर्वोच्च एडवरटाइजिंग एजेंसी में से एक बन गई।
रूपचंद माहेश्वरी कार्य में लगन और कड़े परिश्रम के साथ ईमानदारी को सबसे बड़ा स्थान देते थे। उनका मानना था, ईमानदारी का गुण व्यक्ति के हर काम में झलकता है। माहेश्वरी के संस्मरणों में एक और रोचक तथ्य यह भी सामने आया, कि उस जमाने में संचार माध्यम उपलब्ध न होने कारण साइन बोर्ड व वाॅल पेंट जैसे स्थानीय प्रचार माध्यम सर्वाधिक प्रभावी थे। इसी कारण से माहेश्वरी ने प्रेस एडवरटाइजिंग के साथ आउटडोर एडवरटाइजिंग में भी कदम रखा और आगे जा कर एन.एस. पब्लिसिटी एजेंसी की स्थापना की और तेजी से प्रगति करते हुए आउटडोर एडवरटाइजिंग मंें अपना आधिपत्य स्थापित किया।
माहेश्वरी की जुबानी - ‘‘मैनें अपने कैरियर की शुरूआत में सन् 1958 में जयपुर के सिरह ड्याढ़ी बाजार से हिंद साइकिल के डीलर मुन्ना खां से 158 रु. में एक साइकिल खरीदी। राजस्थान क्राॅनिकल के सरदार कर्तारसिंह नारंग ने मुझे न सिर्फ अखबार के विज्ञापन की कमान सौंप रखी थी, बल्कि मुझे अपने अखबार का रिपोर्टर भी नियुक्त कर रखा था। प्रातः 9 बजे मैं अपनी साईकिल पर घर से रवाना होता था। घर से सीधा लगभग 20 किमी पर जयपुर वेस्ट औद्योगिक क्षेत्र फैक्ट्रियो में डोर-टू-डोर जाता और विज्ञापन के लिए सम्पर्क करता। फिर अपरान्ह 3 बजे वहां से रवाना होकर 20 किमी पर जयपुर साउथ औद्योगिक क्ष्ेात्र में पहुंचता। वहां से रात्रि 8 बजे घर लौट कर खाना खा कर विज्ञापन की डिजाइन बनाया करता। मेरे विज्ञापनों में होटल मानसिंह, होटल रामबाग, सरकारी विभाग तथा बैंक इत्यादि के फुल पेज विज्ञापन हुआ करते थे। देर तक स्वयं खड़े रह कर मैं जयपुर प्रिंटर्स में कम्पोजिंग करवाता था।’’
माहेश्वरी को उनके उत्कृष्ट कार्यों और अद्भुत उपलब्धियों के लिए अनेक बार विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया। माहेश्वरी जी हमेशा कहते थे ‘‘मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। अपने जीवन के 87 वसंत पूरे कर माहेश्वरी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके परिश्रम, उनकी कार्यशैली और उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व की गूंज हमें हमेशा सुनाई देती रहेगी।
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