० आशा पटेल ०
डिस्पोजेबल सैनिटरी पैड के कारण हर महीने भारी मात्रा में गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे जमा हो रहे हैं जो पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह साबित हो रहे हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए माता अमृतानंदमयी मठ के अमृता सर्व (सेल्फ रिलायंट विलेज) कार्यक्रम की सह-निदेशक अंजू बिष्ट ने कहा कि भारत में स्थायी मासिक धर्म स्वच्छता केवल जैविक सामग्री से बने पुन: इस्तेमाल योग्य पैड के इस्तेमाल से ही प्राप्त की जा सकती है।
भारत की पैड वुमन के रूप में विख्यात अंजू बिष्ट कपड़े और केले के रेशे से बने सैनिटरी पैड के उपयोग और पुन: उपयोग को बढ़ावा देने के लिए जानी जाती हैं। वह सौख्यम रियूजेबल पैड की सह-निर्माता हैं, जिसे राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान, हैदराबाद ने सबसे नवीन उत्पाद के रूप में सम्मानित किया है। 2018 में पोलैंड में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भी इस पैड की सराहना की गई थी।
अंजू बिष्ट ने कहा‚ “राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, भारत में मासिक धर्म की उम्र वाली साढ़े 35 करोड़ महिलाएं और लड़कियां हैं। कई गरीब महिलाओं की अभी भी अपने मासिक धर्म को प्रबंधित करने के लिए स्वच्छ उत्पादों तक पहुंच नहीं है।अंजू बिष्ट ने कहा‚हर सौख्यम रियूजेबल पैड 3 साल तक चलता है, और पांच पैड के एक पैक की कीमत केवल 330 रुपये है। इसके विपरीत, भारत में एक औसत महिला डिस्पोजेबल पैड खरीदने पर हर महीने 50-100 रुपये खर्च करती है, इस तरह हर साल और जीवन में पूरे मासिक धर्म के दौरान इस पर काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं। इन दिनों ग्रामीण क्षेत्रों में भी, महिलाएं और लड़कियां मासिक धर्म स्वच्छता के लिए एक बेहतर उत्पाद का इस्तेमाल करना चाहती हैं।
भारत और दुनिया भर में 200,000 से अधिक महिलाओं और लड़कियों ने सौख्यम रियूजेबल पैड का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। यह सालाना 812 टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन को रोकने में मदद कर रहा है और इसने 17,500 टन गैर-बायोडिग्रेडेबल मासिक धर्म कचरे को समाप्त कर दिया है।
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