इस कार्यक्रम का आयोजन एस्टर स्कूल गुरुग्राम में किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था अध्यक्ष डा धनीराम अग्रवाल ने किया जबकि मुख्य अतिथि के रूप में शायर एवं रेडियो बूज के प्रबंध निदेशक मुकेश गंभीर शोभायमान थे । विशिष्ट अतिथि के रूप में स्टॉरेक्स यूनिवर्सिटी के पूर्व उपकुलपति डा अशोक दिवाकर ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई । कर्नल कुँवर प्रताप सिंह ने स्वागताध्यक्ष की भूमिका का निर्वहन किया । कार्यक्रम का सधा हुआ संचालन साहित्यिक सूझ - बूझ के साथ मदन साहनी ने शानदार ढंग से किया । राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त डा मुक्ता के दो काव्य संग्रह "सिलसिला चलता रहेगा' , "सुक़ून कहाँ " एवं एक निबन्ध संग्रह 'अनुभूत चिन्तन के" को लोकार्पित किया गया । ज्ञातव्य है कि इसके पूर्व सतत रचनाशील डा मुक्ता के 34 संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ।
मुकेश गम्भीर ने अपनी शायरी के माध्यम से अपनी बात कही ।
" दिलों के सच्चे जज्बात लिखता हूँ ,होंठो तक आकर रुक जाये वो अल्फाज लिखता हूँ , कहने को करता हूँ बात अपनी , उसमें छुपी तुम्हारी ही बात लिखता हूँ ।'
अध्यक्षीय संबोधन में डा अग्रवाल ने कहा ," वर्तमान समय मे समाज मे जो घटित हो रहा है , जो विषमता व विद्रूपता व्याप्त है उसे देखने के बाद किसी संवेदनशील लेखक का मन खुद को लिखने से रोक नहीं सकता ।" इसके पूर्व सुरेखा शर्मा, मुक्ता मिश्रा एवं डा सविता उपाध्याय ने पुस्तक पर विस्तारपूर्वक अपने विचार रखे । सुरेखा शर्मा ने "सिलसिला चलता रहेगा" काव्य संग्रह को " निर्मम सच्चाइयों से परिचय करवाती कवितायें " शीर्षक दिया । उन्होंने कहा कि अनेक मनोभावों को व्यक्त करती कवितायें शीर्षक को सार्थक सिद्ध करती हैं । कविताओं में अकुलाहट है, बेबसी है जिसमें उपेक्षिता को सूक्ष्मता से चित्रित किया गया है । कवितायें संवेदना के निकट है जिसमें तार- तार होते पारिवारिक रिश्तों के प्रति आक्रोश दिखाई देता है ।
डा बीना राघव द्वारा लिखित निबंध संग्रह " अनुभूत सत्य चिंतन के" की समीक्षा का पाठ मुक्ता मिश्रा ने सहज ढंग से वाणी कौशल के साथ किया । उन्होंने इस संग्रह को अंतर्मन को आलोकित करती प्रकाश स्तम्भ की संज्ञा दी । उन्होंने कहा ये निबंध जहाँ समाज को आइना दिखाते हैं वहीं युवा पीढ़ी के लिये चिंतन कोश है और छात्रों के उपयोगिता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । इसमें लेखिका का निजी अनुभव व बोध झलकता है । संग्रह के 33 निबंधों में सकारात्मक सोच का प्रभाव दिखाई देता है ।
डा सविता उपाध्याय ने काव्य संग्रह "सुक़ून कहाँ " को वक्त के आगोश में रचना की संज्ञा दी । उन्होंने कहा इसमे स्त्री की यातना, संघर्ष , चेतना को कविता का आधार बनाया गया है । स्त्री विमर्श के मूल तत्व को मार्मिकता से रेखांकित किया गया है । विषाक्त वातावरण में विकृत मानसिकता का पनपना स्वभाविक है ऐसी स्थिति में सुक़ून के पल तलाशना कल्पनातीत है । ऐसा प्रतीत होता है कि लेखिका ने जीवन की त्रासदी को निकट से देखा है। कविताओं में रुदन है,टीस है । डा मुक्ता ने अपने रचना संसार का संक्षिप्त वर्णन करते हुऐ कहा कोई एक शब्द या पंक्ति मन को स्पर्श करते ही मन उद्वेलित हो उठता है जो लिखने को विवश करता है । उन्होंने विनम्रता पूर्वक परम शक्ति सृष्टि नियंता के प्रति आभार व्यक्त किया । उन्होंने अतिथिगण एवं उपस्थित श्रोताओं के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया ।
इस अवसर पर प्राचार्य उर्मिल यादव, नरेंद्र लाहड़, मंजू भारती, नरेंद्र खामोश, रघुबीर सिंह बोकन, नरेंद्र गौड़, परिणीता सिन्हा, वीणा अग्रवाल, शारदा मित्तल, त्रिलोक कौशिक, बी एल सिंगला, सुरिंदर मनचन्दा, मीना चौधरी, ज्योत्स्ना कलकल, लाडो कटारिया, राधा शर्मा , अनिल श्रीवास्तव सहित कई साहित्य प्रेमी उपस्थित थे
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